________________ षट्पटिस्थानक समवाय] [125 सभी दधिमुख पर्वत पल्य (ढोल) के आकार से अवस्थित हैं, नीचे ऊपर सर्वत्र समान विस्तार वाले हैं और चौंसठ हजार योजन ऊंचे हैं। 327- सोहम्मीसाणेसु बंभलोए य तिसु कप्पेसु चउष्टुिं विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता। सौधर्म, ईशान और ब्रह्मकल्प इन तीनों कल्पों में चौसठ (32+282-4 = 64) लाख विमानावास हैं। ३२८-सव्वस्स वि य णं रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चउसट्टिलट्ठीए महग्घे मुत्तामणिहारे पण्णत्ते। ___ सभी चातुरन्त चक्रवर्ती राजाओं के चौसठ लड़ी वाला बहुमूल्य मुक्ता-मणियों का हार कहा गया है ॥चतुःषष्टिस्थानक समवाय समाप्त // पञ्चषष्टिस्थानक-समवाय ३२९---जंबुद्दीवे णं दीवे पणढेि सूरमंडला पण्णत्ता। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में पैंसठ सूर्यमण्डल (सूर्य के परिभ्रमण के मार्ग) कहे गये हैं। ३३०--थेरे णं मोरियपुत्ते पणसट्ठिवासाई अगारमज्झे वसित्ता मुडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइए। स्थविर मौर्यपुत्र पैंसठ वर्ष अगारवास में रहकर मुडित हो अगार त्याग कर अनगारिता में प्रवजित हुए। ३३१-सोहम्मडिसियस्स गं विमाणस्स एगमेगाए बाहाए पणट्टि पणट्टि भोमा पण्णत्ता। सौधर्मावतंसक विमान की एक-एक दिशा में पैंसठ-पैंसठ भवन कहे गये हैं। ॥पञ्चषष्टिस्थानक समवाय समाप्त // षट्षष्टिस्थानक-समवाय 332-- दाहिणडमाणुस्सखेत्ताणं छाटुं चंदा पभासिसु वा, पभासंति वा, पभासिस्संति वा। छाट्ठि सूरिया तविसु वा, तवंति वा, तविस्संति वा / उत्तरमाणुस्सखेत्ताणं छावट्टि चंदा पभासिसु वा, पभासंति वा, पभासिस्संति बा, छावद्धि सूरिया विसु वा, तवंति वा, तविस्संति वा। दक्षिणार्ध मानुष क्षेत्र को छियासठ चन्द्र प्रकाशित करते थे, प्रकाशित करते हैं और प्रकाशित करेंगे। इसी प्रकार छियासठ सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे / उत्तरार्ध मानुष क्षेत्र को छियासठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org