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________________ 120] [समवायाङ्गसूत्र के सात और स्थानाङ्ग के दश, इस प्रकार सर्व (9+ 15'--'16+7+10 = 57) सत्तावन अध्ययन कहे गये हैं। 301. गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्झदेसभाए एस णं सत्तावन्नं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं दगभागस्स के उयस्स य संखस्स य जूयस्स य दयसोमस्स ईसरस्स य / गोस्तुभ आवास पर्वत के पूर्वी चरमान्त से बड़वामुख महापाताल के बहु मध्य देशभाग का विना किसी बाधा के सत्तावन हजार योजन अन्तर कहा है। इसी प्रकार दकभास और केतुक का, संख और यूपक का और दकसीम तथा ईश्वर नामक महापाताल का अन्तर जानना चाहिये। विवेचन-पहले बतला आये हैं कि जम्बूद्वीप की वेदिका से गोस्तुभ पर्वत का अन्तर अड़तालोस हजार योजन है। गोस्तुभ का विस्तार एक हजार योजन है। तथा गोस्तुभ और बड़वामुख का अन्तर बावन हजार योजन है और बड़वामुख का विस्तार दश हजार योजन है, उसके आधे पाँच हजार योजन को बावन हजार योजन में मिला देने पर सत्तावन हजार योजन का अन्तर गोस्तभ के पूर्वी चरमान्त से बड़वामुख के मध्यभाग तक का सिद्ध हो जाता है। इसी प्रकार से शेष तीनों महापाताल कलशों का भी अन्तर निकल आता है। 302. मल्लिस्स णं अरहओ सत्तावन्न मणपज्जवनाणिसया होत्था / महाहिमवंत-रुप्पीणं वासहरपव्ययाणं जीवाणं धणुपिठं सत्तावन्नं सत्तावन्नं जोयणसहस्साई दोन्नि य तेणउए जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं पण्णत्तं / मल्लि अर्हत् के संघ में सत्तावन सौ (5700) मनःपर्यवज्ञानी मुनि थे। महाहिमवन्त और रुक्मी वर्षधर पर्वत की जीवात्रों का धन:पृष्ठ सत्तावन हजार दो सौ तेरानवे योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दशभाग प्रमाण परिक्षेप (परिधि) रूप से कहा गया है। // सप्तपञ्चाशत्स्थानक समवाय समाप्त // अष्टपञ्चाशत्स्थानक-समवाय 303. पढम-दोच्च-पंचमासु तिसु पुढवीसु अट्ठावन्न निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। पहली, दूसरी और पांचवी इन तीन पृथिवियों में अट्ठावन (30+25+3=58) लाख नारकावास कहे गये हैं। 304. नाणावरणिज्जस्स वेयणिय-आउय-नाम-अंतराइयस्स एएसि णं पंचण्हं कम्मपगडीणं अट्ठावन्नं उत्तरपगडीओ पण्णत्ताओ। ज्ञानावरणीय, वेदनीय, आयु, नाम और अन्तराय इन पाँच कर्मप्रकृतियों की उत्तरप्रकृतियाँ अट्ठावन (5+2+4+42+5= 58) कही गई हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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