SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 112] [समवायाङ्गसूत्र गोल विमान) और ईषत्प्राग्भारा पृथिवी (सिद्धिस्थान) भी पैतालीस-पंतालीस लाख योजन विस्तृत जानना चाहिए। २६३-धम्मे णं अरहा पणयालीसं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था / धर्म अर्हत् पैंतालीस धनुष ऊंचे थे। २६४-मंदरस्स णं पव्वयस्स चउद्दिसि पि पणयालीसं पणयालीसं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। मन्दर पर्वत की चारों ही दिशाओं में लवणसमुद्र की भीतरी परिधि की अपेक्षा पैंतालीस हजार योजन अन्तर बिना किसी बाधा के कहा गया है। विवेचन-जम्बूद्वीप एक लाख योजन विस्तृत है। तथा मन्दर पर्वत धरणीतल पर दश हजार योजन विस्तृत है / एक लाख में से दश हजार योजन घटाने पर नव्वे हजार योजन शेष रहते हैं। उसके आधे पैंतालीस हजार होते हैं / अतः मन्दर पर्वत से चारों ही दिशाओं में लवण समुद्र की वेदिका पैंतालीस हजार योजन के अन्तराल पर पाई जाती है / २६५-सब्वे वि णं दिवडखेत्तिया नक्खत्ता पणयालीसं मुहत्ते चंदेण सद्धि जोगं जोइंसु वा, जोइंति वा, जोइस्संति वा। तिन्नेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य / एए छ नक्खत्ता पणयालमुहत्तसंजोगा // 1 // सभी द्वयर्ध क्षेत्रीय नक्षत्रों ने पैतालीस मुहूर्त तक चन्द्रमा के साथ योग किया है, योग करते हैं और योग करेंगे। तीनों उत्तरा, पुनर्वसु, रोहिणी और विशाखा ये छह नक्षत्र पैतालीस मुहूर्त तक चन्द्र के साथ संयोग वाले कहे गये हैं। विवरण-चन्द्रमा का तीस मुहूर्त भोग्य क्षेत्र समक्षेत्र कहलाता है / उसके ड्योढे पैंतालीस मुहूर्त भोग्य क्षेत्र को द्वयर्धक्षेत्रीय कहते हैं। २६६–महालियाए विमाणपविभत्तीए पंचमे वग्गे पणयालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता / महालिका विमानप्रविभक्ति सूत्र के पाँचवें वर्ग में पैंतालीस उद्देशन कहे गये हैं / ॥पंचचत्वारिंशत्स्थानक समवाय समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy