________________ 110] [समवायाङ्गसूत्र नामे 26, साहारणसरीरनामे 27, पत्तेयसरीरनामे 28, थिरनामे 29, अथिरनामे 30, सुभनामे 31, असुभनामे 32, सुभगनामे 33, दुब्भगनामे 34, सुस्सरनामे 35, दुस्सरनामे 36, प्राएज्जनामे 37, अणाएज्जनामे 38, जसोकित्तिनामे 39, अजसोकित्तिनामे 40, निम्माणनामे 41, तित्थकरनामे 42 / __ नामकर्म बयालीस प्रकार का कहा गया है / जैसे-१. गतिनाम, 2. जातिनाम, 3. शरीरनाम, 4. शरीराङ्गोपाङ्गनाम, 5. शरीरबन्धननाम, 6. शरीरसंघातननाम, 7. संहनननाम, 8. संस्थाननाम, 9. वर्णनाम, 10. गन्धनाम, 11. रसनाम, 12. स्पर्शनाम, 13. अगुरुलघुनाम, 14. उपघातनाम, 15. पराघातनाम, 16. आनुपूर्वीनाम, 17. उच्छ्वासनाम, 18. प्रातपनाम, 19. उद्योतनाम, 20. विहायोगतिनाम, 21, बसनाम, 22. स्थावरनाम, 23. सूक्ष्मनाम, 24. बादरनाम, 25. पर्याप्तनाम, 26. अपर्याप्तनाम, 27. साधारणशरीरनाम, 28. प्रत्येकशरीरनाम, 29. स्थिरनाम, 30. अस्थिरनाम, 31. शुभनाम, 32. अशुभनाम, 33. सुभगनाम, 34. दुर्भगनाम, 35. सुस्वरनाम, रनाम, 37. प्रादेयनाम, 38. अनादेयनाम, 39. यशस्कोत्तिनाम, 40. अयशस्कात्तिनाम, 41. निर्माणनाम और 42. तीर्थकरनाम / 252- लवणे णं समुद्दे वायालीसं नागसाहस्सोओ अभितरियं वेलं धारंति / लवण समुद्र की भीतरी वेला को बयालीस हजार नाग धारण करते हैं / २५३---महालियाए णं विमाणपविभत्तीए वितिए वग्गे वायालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता। महालिका विमानप्रविभक्ति के दूसरे वर्ग में बयालीस उद्देशन काल कहे गये हैं। 254-- एगमेगाए ओसप्पिणीए पंचम-छट्ठीओ समाओ बायालीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णत्ताओ। एगमेगाए उस्सप्पिणीए पढम-बीयाओ समाओ वायालीसं वाससहस्साई कालेणं पण्णत्तायो। प्रत्येक अवसर्पिणी काल का पाँचवा छठा पारा (दोनों मिल कर) बयालीस हजार वर्ष का कहा गया है / प्रत्येक उत्सर्पिणी काल का पहिला-दूसरा पारा बयालीस हजार वर्ष का कहा गया है। ॥द्विचत्वारिंशत्स्थानक समवाय समाप्त / त्रिचत्वारिंशत्स्थानक-समवाय २५५-तेयालीसं कम्मविवागज्झयणा पण्णत्ता। कर्मविपाक सूत्र (कर्मों का शुभाशुभ फल बतलानेवाले अध्ययन) के तेयालीस अध्ययन कहे गये हैं। २५६-पढम-चउत्थ-पंचमासु पुढवीसु तेयालीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता ! जंबुद्दीवस्स णं दोवस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरमंताओ गोथूभस्स णं प्रावासपव्वयस्स पच्चच्छिमिल्ले चरमंते एस णं तेयालीसं जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / एवं चउद्दिसि पि दगभासे संखे दयसीमे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org