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________________ 108] [समवायाङ्गसूत्र ज्ञानावरणीय, मोहनीय, गोत्र और प्रायुकर्म, इन चारों कर्मों की उनतालीस (5+28+ 2+4= 39) उत्तर प्रकृतियां कही गई हैं। // एकोनचत्वारिंशत्स्थानक समवाय समाप्त // चत्वारिंशत्स्थानक-समवाय २३९-अरहओ णं अरिद्वनेमिस्स चत्तालीसं अज्जिया साहस्सीयो होत्था। अरिष्टनेमि अर्हन् के संघ में चालीस हजार प्रायिकाएं थीं। २४०.-मंदरचलिया णं चत्तालीसं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। संती अरहा चतालीसं धणूई उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था / मन्दर चूलिकाएं चालीस योजन ऊंची कही गई हैं। शान्ति अर्हन् चालीस धनुष ऊंचे थे। २४१-भूयाणंदस्स गं नागकुमारस्स नागरन्नो चत्तालीसं भवणावासयसहस्सा पण्णत्ता / खुड्डियाए णं विमाणपविभत्तीए तइए वग्गे चत्तालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता। नागकुमार, नागराज भूतानन्द के चालीस लाख भवनावास कहे गये हैं। क्षुद्रिका विमानप्रविभक्ति के तीसरे वर्ग में चालीस उद्देशन काल कहे गये हैं। २४२-फग्गुणपुण्णिमासिणीए णं सूरिए चत्तालीसंगुलियं पोरिसीछायं निव्वट्टइत्ता णं चारं चरइ / एवं कत्तियाए वि पुण्णिमाए। फाल्गुण पूर्णमासी के दिन सूर्य चालीस अंगुल की पौरुषी छाया करके संचार करता है / इसी प्रकार कात्तिको पूर्णिमा को भी चालीस अंगुल की पौरुषो छाया करके संचार करता है। २४३–महासुक्के कप्पे चत्तालोसं विमाणावाससहस्सा पण्णत्ता। महाशुक्र कल्प में चालीस हजार विमानावास कहे गये हैं। ॥चत्वारिंशत्स्थानक समवाय समाप्त / / एकचत्वारिंशत्स्थानक-समवाय २४४–नमिस्स णं अरहो एकचत्तालीसं अज्जियासाहस्सीलो होत्था / नमि अर्हत् के संघ में इकतालीस हजार आर्थिकाएं थीं। २४५-चउसु पुढवीसु एक्कचत्तालीसं निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता / तं जहा–रयणप्पाभाए पंकप्पभाए तमाए तमतमाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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