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________________ [समवायाङ्गसूत्र 227- चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररण्णो सभा सुहम्मा छत्तीसं जोयणाणि उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था। असुरेन्द्र असुरराज चमर की सुधर्मा सभा छत्तीस योजन ऊंची है। २२८-समणस्स णं भगवनो महावीरस्स छत्तीसं अज्जाणं साहस्सीओ होत्था / श्रमण भगवान् महावीर के संघ में छत्तीस हजार प्रायिकाएं थीं। २२९-चेतासोएसु णं मासेसु सइ छत्तीसंगुलियं सूरिए पोरिसीछायं निव्वत्तइ / चैत्र और आसोज मास में सूर्य एक बार छत्तीस अंगुल की पौरुषी छाया करता है / ॥षत्रिंशत्स्थानक समवाय समाप्त // सप्तत्रिंशत्स्थानक-समवाय २३०--कुथुस्स णं अरहओ सत्ततीसं गणा, सत्तत्तीसं गणहरा होत्था / कुन्थु अर्हन के संतीस गण और सैंतीस गणधर थे। 231- हेमवय-हेरण्णवइयाओ णं जीवाओ सत्ततीसं जोयणसहस्साइं छच्च चउसत्तरे जोयणसए सोलसयएगूणवीसइभाए जोयणस्स किचिविसेसूणाओ आयामेणं पण्णत्ताओ। सन्यासु णं विजय-वैजयंतजयंत-अपरजियासु रायहाणीसु पागारा सत्ततोसं सत्ततीसं जोयणाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र की जीवाएं संतीस हजार छह सौ चौहत्तर योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से कुछ कम सोलह भाग (3767411) लम्बी कही गई हैं / २३२-खुड्डियाए विमाणपविभत्तीए पढमे वग्गे सत्ततीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता / क्षुद्रिका विमानप्रविभक्तिनामक कालिक श्रुत के प्रथम वर्ग में सैंतीस उद्देशन काल कहे गये हैं। २३३–कत्तियबहुलसत्तमीए णं सूरिए सत्ततोसंगुलियं पोरिसीछायं निव्वत्तइत्ता णं चारं चरह। ___ कात्तिक कृष्णा सप्तमी के दिन सूर्य सैंतीस अंगुल की पौरुषी छाया करता हुआ संचार करता है। सप्तत्रिशत्स्थानक समवाय समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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