________________ 98] [ समवायाङ्गसूत्र 10. शैक्ष साधु रानिक साधु के साथ बाहर विचारभूमि को निकलता हुआ यदि शैक्ष रानिक साधु से पहले आचमन (शौच-शुद्धि) करे तो यह शैक्ष की दसवीं आशातना है। 11. शैक्ष साधु रात्निक साधु के साथ बाहर विचारभूमि को या विहारभूमि को निकलता हुअा यदि शैक्ष रानिक साधु से पहले आलोचना करे और रात्निक पीछे करे तो यह शैक्ष की ग्यारहवीं पाशातना है। 12. कोई साधु रात्निक साधु के साथ पहले से बात कर रहा हो, तब शैक्ष साधु रानिक साधु से पहिले ही बोले और रात्निक साधू पीछे बोल पावें। यह शैक्ष की बारहवीं प्राशातना है। 13. रात्निक साधु रात्रि में या विकाल में शैक्ष से पूछे कि आर्य ! कौन सो रहे हैं और कौन - जाग रहे हैं ? यह सुनकर भी यदि शैक्ष अनसुनी करके कोई उत्तर न दे, तो यह शैक्ष की तेरहवीं आशातना है। 14. शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम या स्वादिम लाकर पहिले किसी अन्य शैक्ष के सामने आलोचना करे पीछे रात्निक साधु के सामने, तो यह शैक्ष की चौदहवीं अाशातना है / 15. शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम या स्वादिम को लाकर पहले किसी अन्य शैक्ष को दिखलावे, पीछे रात्निक साधु को दिखावे, तो यह शैक्ष की पन्द्रहवीं पाशातना है। 16. शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम या स्वादिम-पाहार लाकर पहले किसी अन्य शैक्ष को भोजन के लिए निमंत्रण दे और पीछे रानिक साधु को निमंत्रण दे, तो यह शैक्ष को सोलहवीं आशातना है।। 17. शैक्ष साधु रानिक साधु के साथ अशन, पान, खादिम, स्वादिम आहार को लाकर रानिक साधु से बिना पूछे जिस किसी को दे, तो यह शैक्ष की सत्तरहवीं पाशातना है। 18. शैक्ष साधु अशन, पान, खादिम, स्वादिम आहार लाकर रात्निक साधु के साथ भोजन __ करता हा यदि उत्तम भोज्य पदार्थों को जल्दी-जल्दी बड़े-बड़े कवलों से खाता है, तो यह शैक्ष की अठारहवीं पाशातना है / 19. रात्निक साधु के द्वारा कुछ कहे जाने पर यदि शैक्ष उसे अनसुनी करता है, तो यह शैक्ष की उन्नीसवीं पाशातना है। 20. रात्निक साधु के द्वारा कुछ कहे जाने पर यदि शैक्ष अपने स्थान पर ही बैठे हुए सुनता है तो यह शैक्ष की बीसवीं पाशातना है / 21. रात्निक साधु के द्वारा कुछ कहे जाने पर 'क्या कहा ?' इस प्रकार से यदि शैक्ष कहे तो यह शैक्ष की इक्कीसवीं पाशातना है / 22. शैक्ष रात्निक साधु को 'तुम' कह कर (तुच्छ शब्द से) बोले तो यह शैक्ष की बाईसवीं आशातना है। 23. शैक्ष रानिक साधु से यदि चप-चप करता हुआ उदंडता से बोले तो यह शैक्ष की तेईसवीं आशातना है। 24. शैक्ष, रानिक साधु के कथा करते हुए की 'जी हाँ' आदि शब्दों से अनुमोदना न करे तो यह शैक्ष की चौबीसवीं पाशातना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org