SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [समवायाङ्गसूत्र के बाद प्रान-प्राण या उच्छ्वास-नि:श्वास लेते हैं। उन देवों के बत्तीस हजार वर्षों के बाद आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो बत्तीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मो से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व कर्मों का अन्त करेंगे। // द्वात्रिंशत्स्थानक समवाय समाप्त // त्रयरिंत्रशत्स्थानक-समवाय 215 तेत्तीसं आसायणाओ पण्णत्तानो / तं जहा१. सेहे राइणियस्स आसन्नं गंता भवइ आसायणा सेहस्स / 2. सेहे राइणियस्स परओ गंता भवइ प्रासायणा सेहस्स / 3. सेहे राइणियस्स सपक्खं गंता भवइ पासायणा सेहस्स / 4. सेहे राइणियस्स आसन्नं ठिच्चा भवइ प्रासायणा सेहस्स जाब 5. [सेहे रायणियस्स पुरओ ठिच्चा भवइ, आसायणा सेहस्स। 6. सेहे रायणियस्स सपक्खं ठिच्चा भवइ, आसायणा सेहस्स / 7. सेहे रायणियस्स आसन्न निसीइत्ता भवइ, प्रासायणा सेहस्स / 8. सेहे रायणियस्स पुरओ निसीइत्ता भवइ, अासायणा सेहस्स / 9. सेहे रायणियस्स सद्धि सपक्खं निसीइत्ता भवइ, आसायणा सेहस्स / 10. सेहे रायणियस्स सद्धि बहिया वियारभूमि निक्खते समाणे पुवामेव सेहतराए आयामेइ पच्छा रायणिए, आसायणा सेहस्स / 11. सेहे रायणिए सद्धि बहिया विहारमि वा वियारभमि वा निक्खंते समाणे तत्थ पुवामेव सेहतराए बालोएति पच्छा रायणिए, प्रासायणा सेहस्स। 12. सेहे रायणियस्स रातो वा वियाले वा वाहरमाणस्स अज्जो ! के सुत्ते ? के जागरे ? तत्थ सेहे जागरमाणे रायणियस्स अपडिसुणेत्ता भवति, प्रासायणा सेहस्स / 13. केइ रायणियस्स पुवं संलवित्तए सिया, तं सेहे पुव्वतरांग पालवेति पच्छा रायणिए, प्रायायणा सेहस्स। 14. सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुव्वमेव सेहतरागस्स पालोएइ, पच्छा रायणियस्स, पासायणा सेहस्स / सेहे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुत्वमेव सेहतरागस्स उवदंसेति, पच्छा रायणियस्स, आसायणा सेहस्स / 16. सेहे असणं पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं पुवामेव सेहतरागं उणि मंतेइ, पच्छा रायणियं, आसायणा सेहस्स। 17. सेहे रायणिएण सद्धि असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहेत्ता तं रायणियं अणापुच्छित्ता जस्स-जस्स इच्छइ तस्स-तस्स खद्ध-खद्धं दलयइ, आसायणा सेहस्स / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy