________________ 32] [समवायाङ्गसूत्र विमाणं देवत्ताए उबवण्णा तेसि णं देवाणं एक्कारस सागरोवमाइं ठिई पण्णता। ते गं देवा एक्कारसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा, ऊससंति वा नीससंति वा / तेसि णं देवाणं एक्कारसण्हं वाससहस्साणं आहारट्ठे समुप्पज्जइ।। _____ संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे एक्कारसहि भवग्गहहि सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सम्वदुक्खाणमंतं करिस्संति / लान्तक कल्प में कितनेक देवों की स्थिति ग्यारह सागरोपम है। वहां पर जो देव ब्रह्म, सुब्रह्म, ब्रह्मावर्त, ब्रह्मप्रभ, ब्रह्मकान्त, ब्रह्मवर्ण, ब्रह्मलेश्य, ब्रह्मध्वज, ब्रह्मशृग, ब्रह्मसृष्ट, ब्रह्मकुट और ब्रह्मोत्तरावतंसक नाम के विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की स्थिति ग्यारह सागरोपम कही गई है / वे देव ग्यारह अर्धमासों (साढ़े पांच मासों) के बाद अान-प्राण या उच्छ्वास-नि:श्वास लेते हैं। उन देवों को ग्यारह हजार वर्ष के बाद पाहार की इच्छा होती है / कितनेक भव्य सिद्धिक जीव ऐसे हैं जो ग्यारह भव करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे / // एकादशस्थानक समवाय समाप्त / / द्वादशस्थानक-समवाय ७७-बारस भिक्खुपडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-मासिआ भिक्खुपडिमा, दो मासिआ, भिक्खुपडिमा, तिमासिआ भिक्खुपडिमा, चउमासिआ भिक्खुपडिमा, पंचमासिआ भिक्खुपडिमा, छमासिआ भिक्खुपडिमा, सत्तमासिआ भिक्खुपडिमा, पढमा सत्तराइंदिया भिक्खुपडिमा, दोच्चा सत्तराईदिया भिक्खुपडिमा, तच्चा सत्तराईदिया भिक्खुपडिमा, अहोराइया भिक्खुपडिमा, एगराइया भिक्खुपडिमा। बारह भिक्षु-प्रतिमाएं कही गई हैं। जैसे--एकमा सिकी भिक्षु-प्रतिमा, दो मासिकी भिक्षुप्रतिमा, तीन मासिकी भिक्षुप्रतिमा, चार मासिकी भिक्षुप्रतिमा, पांच मासिकी भिक्षुप्रतिमा, छह मासिकी भिक्षुप्रतिमा, सात मासिकी भिक्षुप्रतिमा, प्रथम मप्तरात्रिदिवा भिक्षुप्रतिमा, द्वितीय सप्तरात्रिदिवा प्रतिमा, तृतीय सप्तरात्रिदिवा प्रतिमा, अहोरात्रिक भिक्षुप्रतिमा और एकरात्रिक भिक्षुप्रतिमा। विवेचन--भिक्षावत्ति से गोचरी ग्रहण करने वाले साधुनों को भिक्षु कहा जाता है। / सामान्य भिक्ष जनों में जो विशिष्ट संहनन और श्रतधर साधू होते हैं, वे संयम-विशेष की साधना करने लिए जिन विशिष्ट अभिग्रहों को स्वीकार करते हैं, उन्हें भिक्षुप्रतिमा कहा जाता है। प्रस्तुत सूत्र में उनके बारह होने का उल्लेख किया गया है। संस्कृत टोकाकार ने उनके ऊपर कोई खास प्रकाश नहीं डाला है, अतः दशाश्रुतस्कन्ध की सातवीं दशा के अनुसार उनका संक्षेप से वर्णन किया जाता है--- __ एकमासिको भिक्षुप्रतिमा—इस प्रतिमा के धारी भिक्षु को काय से ममत्व छोड़कर एक मास तक पानेवाले सभी देव, मनुष्य और नियंच-कृत उपसर्गों को सहना होता है। वह एक मास तक शुद्ध निर्दोष भोजन और पान की एक-एक दत्ति ग्रहण करता है / एक वार में अखंड धार से दिये गये भोजन या पानी को एकदत्ति कहते हैं। वह गर्भिणी, अल्पवयस्क बच्चे वाली, बच्चे को दूध पिलाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org