________________ 28] [समवायाङ्गसूत्र विवेचन–जहाँ पर उत्पन्न होने वाले मनुष्यों को असि मषि, कृषि अदि किसी भी प्रकार का आजीविका-सम्बन्धी कार्य नहीं करना पड़ता है, किन्तु जिनकी सभी आवश्यकताएं वृक्षों से पूर्ण हो जाती हैं, ऐसी भूमि को अकर्मभूमि या भोगभूमि कहते हैं और जिन वृक्षों से उनकी अावश्यकताएं पूरी होती हैं, उन्हें कल्पवृक्ष कहा जाता है / मद्यांग जाति के वृक्षों से अकर्मभूमि के मनुष्यों को मधुर मदिरा प्राप्त होती है। भृग जाति के वृक्षों से उन्हें भाजन पात्र प्राप्त होते हैं। तूर्यांग जाति के वृक्षों से उन्हें वादित्र प्राप्त होते हैं / दीपांग जाति के वृक्षों से दीप-प्रकाश मिलता है। ज्योतिरंग वृक्षों से अग्नि के सदृश प्रकाश प्राप्त होता है। चित्रांग वृक्षों से नाना प्रकार के पुष्प प्राप्त होते हैं / चित्ररस जाति के वृक्षों से अनेक रसवाला भोजन प्राप्त होता है। मण्यंग जाति के वृक्षों से प्राभूषण प्राप्त होते हैं / गेहाकार वृक्षों से उनको निवासस्थान प्राप्त होता है और अनग्न वृक्षों से उन्हें वस्त्र प्राप्त होते हैं। ६७-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं जहणणं दस वासासहस्साइं ठिई पण्णत्ता / इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दस पलिओवमाइं ठिई पण्णता। चउत्थीए पुढवीए दस निरयावाससयसहस्साई पण्णत्ताई। चतुत्थीए पुढवीए अस्थेगइयाणं नेरइयाणं दस सारागोवमाइं ठिई पण्णत्ता / पंचमीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं जहणणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कितनेक नारकों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है। इस रत्नप्रभा पृथ्वी के कितनेक नारकों की स्थिति दस पल्योपम की कही गई है। चौथी नरक पृथ्वी में दस लाख नारकावास हैं / चौथी पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति दस सागरोपम की होती है। पांचवी पृथ्वी में किन्हीं-किन्हीं नारकों की जघन्य स्थिति दस सागरोपम कही गई है। ६८-असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं जहण्णणं दस वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता। असुरिंद. वज्जाणं भोमिज्जाणं देवाणं अत्थेगइयाणं जहष्णणं दस वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता। असुरकूमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं दस पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता / वायरवणस्सइकायाणं उक्कोसेणं दस वाससहस्साई ठिई पन्नत्ता। वाणमंतराणं देवाणं अत्थेगइयाणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता। कितनेक असुरकुमार देवों की जघन्यस्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है। असुरेन्द्रों को छोड़कर कितनेक शेष भवनवासी देवों को जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है। कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति दश पल्योपम कही गई है। बादर वनस्पतिकायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है। कितनेक वान व्यन्तर देवों की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है। ६९–सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं दस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता / बंभलोए कम्पे देवाणं उक्कोसेणं दस सागरोबमाई ठिई पण्णत्ता। सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति दश पल्योपम कही गई है / ब्रह्मलोक कल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपम कही गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org