________________ कुलकर-तारारूप - अन्तर - विमान-यमकपर्वत-चित्र-विचित्रकट-वृत वैताढ्य--- हरि-हरिस्सहकूट--बलकूट-तीर्थंकर-पार्श्व-द्रह--विमान-पाव - द्रह–अन्तर - द्रह--- मन्दर-पर्वत--आवास-अन्तर-हरिबास-रम्यकवास-जीवा-मन्दर-पर्वत - जम्बूद्वीपलवणसमुद्र-पाय---धातकीखण्ड-अन्तर–चक्रवर्ती-अन्तर-आवास-तीर्थकर-वासूदेवमहावीर-ऋषभ-महावीर / द्वादशाङ्ग गणिपिटक 171 173 द्वादशांग-नाम प्राचारांग सूत्रकृत-अंग स्थानांम समवायांग व्याख्याप्रज्ञप्ति जाताधर्मकथा अन्तकृद्दशा अनुत्तरोपपातिकदशा प्रश्नव्याकरण विपाकश्रुत दृष्टिवाद गणिपिटक' को विराधनाआराधना का फल गणिपिटक को नित्यता 177 179 180 182 उपासकदशा 196 197 199-243 विविधविषय निरूपण राशि-पर्याप्तापर्याप्त--आवास--स्थिति-शरीर-अवधि-वेदना-लेश्या-याहारआयुबन्ध-उत्पाद-उद्वर्तनाविरह--आकर्ष-संहनन-संस्थान-वेद-समवसरण-कुलकर तीर्थंकर-चक्रवर्ती--बलदेव-वासुदेव-ऐश्वततीर्थंकर.....भावी तीर्थकरभावी-चक्रवर्ती--भावी बलदेव-वासुदेव-ऐरवत क्षेत्र के भावी तीर्थकर-चक्रवर्ती बलदेव-वासुदेव। [ 120 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org