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________________ विद्वान् हैं, उनकी सम्पादनकला का यत्र-तत्र सहज ही दिग्दर्शन होता है। वस्तुतः भारिल्ल जी आगमों को सर्वाधिक सुन्दर व प्रामाणिक बनाने के लिये जो श्रमसाध्य कार्य कर रहे हैं, वह उन की आगम-निष्ठा का द्योतक है। समवायांग की प्रस्तावना का आलेखन करते समय अनेक व्यवधान उपस्थित हुये। उन में सबसे बड़ा व्यवधान प्रकृष्ट प्रतिभा की धनी आगम व दर्शन की गम्भीर ज्ञाता पूज्य मातेश्वरी साध्वीरत्न महासती श्री प्रभावती जी का संथारे के साथ अकस्मात् दि. 27 जनवरी 1982 को स्वर्गवास हो जाना रहा। माँ की ममता निराली होती है। माता-पिता के उपकारों को भुलाया नहीं जा सकता। जिस मातेश्वरी ने मुझे जन्म ही नहीं दिया, अपितु साधना के महामार्ग पर बढ़ने के लिये उत्प्रेरित किया, उसके महान् उपकार को कैसे भुलाया जा सकता है, तथापि कर्तव्य की जीती जागती प्रतिमा का यही हादिक आशीर्वाद था कि 'वत्स करो!' उसी संबल' को लेकर मैं प्रस्तावना की ये पंक्तियाँ लिख गया हूँ। आशा है प्रस्तुत प्रागम अत्यधिक लोकप्रिय होगा और स्वाध्यायप्रेमियों के लिये यह संस्करण प्रत्यन्त उपयोगी रहेगा। ब श्रुतसेवा जैन स्थानक मोकलसर (राज.) दि. 26 फरवरी, 1982 - देवेन्द्रमुनि शास्त्री [ 110 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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