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________________ चौथे समवाय के दसवें सूत्र से लेकर सत्तहरवें सूत्र तक के विषयों पर अनुयोगद्वारसूत्र७५७ में भी चिन्तन किया गया है। पाँचवें समवाय के चौदहवें सूत्र से लेकर उन्नीसवें सूत्र तक जो भाव प्रज्ञापित हुये हैं, वे अनुयोगद्वार में भी द्रष्टव्य हैं। छठे समवाय के दसवें सूत्र से लेकर पन्द्रहवें सूत्र तक, और सातवें समवाय के बारहवें सूत्र से लेकर बीसवें सूत्र तक, आठवें समवाय के दसवें सूत्र से लेकर चौदहवें सूत्र तक, नौवें समवाय के बारहवें सत्तरहवें सूत्र तक, दसवें समवाय के दसवें सूत्र से लेकर बावीसवें सूत्र तक, ग्यारहवें समवाय के पाठवें सूत्र से लेकर तेरहवें सूत्र तक, बारहवें समवाय के बारहवें सूत्र तक, तेरहवें समवाय के नवमें सूत्र से लेकर चौदहवें सूत्र तक, चौदहवें समवाय के नवमें सूत्र से लेकर पन्द्रहवें सुत्र तक, पन्द्रहवें समवाय के आठवें सूत्र से लेकर चौदहवें सूत्र तक, सोलहवें समवाय के आठवें सूत्र से लेकर तेरहवें सूत्र तक, सत्तरहवें समवाय के ग्यारहवें सूत्र से लेकर अठारहवें सूत्र तक, अठारहवें ममवाय के नवम सूत्र से लेकर, पन्द्रहवें सूत्र तक, उन्नीसवें समवाय के छठे सूत्र से लेकर बारहवें मूत्र तक, बीसवें समवाय के आठवें सूत्र से लेकर चौदहवें सूत्र तक, इक्कीसवें समवाय के पांचवें सूत्र से लेकर ग्यारहवें मुत्र तक, बावीसवें समवाय के सातवें सूत्र से लेकर चौदहवें सूत्र तक, तेवीसवें समवाय के पांचवें सूत्र से लेकर दसवें सूत्र तक, चौवीसवें समवाय के सातवें सूत्र से लेकर बारहवें सूत्र तक, पच्चीसवें समवाय के दशवे सूत्र से लेकर पन्द्रहवें मूत्र तक, छब्बीसवें समवाय के दुसरे सूत्र से लेकर आठवें सूत्र तक, सत्तावीसवें समवाय के सातवें सूत्र से लेकर बारहवें सूत्र तक अठावीसवें समवाय के छठे सुत्र से लेकर ग्यारहवें सूत्र तक, उनतीसवें समवाय के दशवें सूत्र से लेकर पन्द्रहवें सूत्र तक, तीसवें समवाय के आठवें सूत्र से लेकर तेरहवें सूत्र तक, इकतीसवें समवाय के छठे सूत्र से लेकर ग्यारहवें सूत्र तक, बत्तीसवें समवाय के सातवें सूत्र लेकर ग्यारहवें सूत्र तक, तेतीसवें समवाय' के पांचवें सूत्र से लेकर ग्यारहवें सूत्र तक, जिन-जिन विषयों का वर्णन आया है वे विषय अनुयोगद्वार७५८ में भी कहीं संक्षेप में तो कहीं विस्तार से चचित हैं। इस तरह समवायांग का विषय-वर्णन इतना अधिक व्यापक है कि आगम साहित्य में अनेक स्थलों पर उस सम्बन्ध में विचारचर्चाएं की गई हैं। आगमों में कहीं पर सूत्र शैली का उपयोग हुआ है तो कहीं पर जिज्ञासुओं को समझाने के लिए व्यासशैली का उपयोग भी हुआ है। हमने उपर्युक्त पंक्तियों में मुख्य रूप से समवायांगगत विषय जिन प्रागमों में आये हैं, उन पर सप्रमाण चिन्तन किया है। यों दशवकालिक, नन्दी, दशाश्रुतस्कन्ध व कल्पसूत्र के विषय भी कुछ ममवायांग के साथ मिलते हैं पर उनकी संख्या अधिक न होने से हमने उनका यहाँ पर उल्लेख नहीं किया है और न आगमेतर ग्रन्थों के साथ विषयों की तुलना की है। वैदिक और बौद्ध ग्रन्थों के विषयों के साथ भी समवायांगगत विषयों की तुलना सहजरूप से की जा सकती है। यों संक्षेप में यथास्थान उनका उल्लेख किया गया है। आज आवश्यकता है आगम साहित्य की अन्य साहित्य के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने की। मुर्धन्य मनीषियों का ध्यान इस ओर केन्द्रित हो तो समन्वय और सत्य के अनेक द्वार उद्घाटित हो सकते हैं। व्याख्या-साहित्य समवायांम सूत्र में न दर्शन सम्बन्धी गहन गुत्थियाँ हैं और न अध्यात्म सम्बन्धी गंभीर विवेचन ही हैं / जो भी विषय निरूपित हैं वे सहज, सुगम और सुबोध हैं, जिसके कारण इस पर न निर्यक्तियां लिखी गईं और न 757. अनुयोगद्वार सूत्र--सूत्र 139 758. अनुयोगद्वार सूत्र--सूत्र 139 [ 107 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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