________________ द्वितीय स्थान–प्रथम उद्देश | [ 27 होना) और अजीवदृष्टिजा क्रिया (अजीव वस्तुओं को देखने के लिए रागात्मक प्रवृत्ति का होना) (21) / स्पृष्टिजा क्रिया दो प्रकार को कही गई है—जीवस्पृष्टिजा क्रिया (जीव के स्पर्श के लिए रागात्मक प्रवृत्ति का होना) और अजीवस्पृष्टिजा क्रिया (अजीव के स्पर्श के लिए रागात्मक प्रवृत्ति का होना) (22) / २३--दो किरियानो पण्णत्तामो, तं जहा—पाडच्चिया चेव, सामंतोवणिवाइया चेव / २४–पाइच्चिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--जीवपाडुच्चिया चेव, अजीवपाडुच्चिया चेव / २५–सामंतोवणिवाइया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा---जीवसामंतोवणिवाइया चेव, प्रजीवसामंतोवणिवाइया चेव / पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है—प्रातीत्यिकी क्रिया (बाहिरी वस्तु के निमित्त से होने वाली क्रिया) और सामन्तोपनिपातिकी क्रिया (अपनी वस्तयों के विषय में लोगों के द्वारा की गई प्रशंसा के सुनने पर होने वाली क्रिया) (23) / प्रातीत्यिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई हैजीवप्रातीत्यिकी क्रिया (जीव के निमित्त से होने वाली क्रिया) और अजीवप्रातीत्यिकी क्रिया (अजीवके निमित्ति से होने वाली क्रिया) (24) / सामन्तोपनिपातिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई हैजीवसामन्तोपनिपातिकी क्रिया (अपने पास के गज, अश्व आदि सजीव वस्तुओं के विषय में लोगों के द्वारा की गई प्रशंसादि के सुनने पर होने वाली क्रिया) और अजीवसामन्तोपनिपातिकी क्रिया (अपने रथ, पालकी आदि अजीव वस्तुओं के विषय में लोगों के द्वारा की गई प्रशंसादि के सुनने पर होने वाली क्रिया) (25) / २६-दो किरियाओ पण्णत्तायो, तं जहा-साहत्थिया चेव, सस्थिया चेव / २७-साहस्थिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—जीवसाहस्थिया चेव, अजीवसाहत्थिया चेव / २८--णेसस्थिया किरिया दुविहा पण्णता, तं जहा-जीवणेसस्थिया चेक, अजीवणेसस्थिया चेव / पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है स्वाहस्तिकी क्रिया (अपने हाथ से होने वाली क्रिया) और नैसृष्टिकी क्रिया (किसी वस्तु के निक्षेपण से होनेवाली क्रिया) (26) / स्वास्तिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है—जीवस्वाहस्तिकी क्रिया (स्व-हस्त-गृहीत जीव के द्वारा किसी दूसरे जीव को मारने की क्रिया) और अजीवस्वास्तिकी क्रिया (स्व-हस्त-गृहीत अजीव शस्त्रादि के द्वारा किसी दूसरे जीवको मारने की क्रिया) (27) / नैसृष्टिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है-जीव-नैसृष्टिकी क्रिया (जीव को फेंकने से होनेवाली क्रिया) और अजीवनसृष्टिकी क्रिया (अजीव को फेंकने से होने वाली क्रिया) (28) 1 २६-दो किरियायो, पण्णत्तामो, तं जहा—प्राणवणिया चेव, वेयारणिया चेव / 30 - प्राणवणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—जीवाणवणिया चेव, अजीवाणवणिया चेव / ३१-वेयारणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—जीववेयारणिया चेव, अजीववेयारणिया चेव। पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है—आज्ञापनी क्रिया (आज्ञा देने से होनेवाली क्रिया) और वैदारिणी क्रिया (किसी वस्तु के विदारण से होनेवाली क्रिया) (28) / आज्ञापनी क्रिया दो प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org