________________ द्वितीय स्थान --प्रथम उद्देश ] [ 25 क्रिया-पद २-दो किरियाम्रो पण्णत्तानो, तं जहा–जीवकिरिया चेव, अजीवकिरिया चेव / ३-जीवकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा सम्मत्तकिरिया चेव, मिच्छत्तकिरिया चेव / ४-अजीवकिरिया दुविहा पण्णता, तं जहा—इरियावहिया चेव, संपराइगा चेव / ५-दो किरियानो पण्णत्तायो, तं जहा--काइया चेव, प्राहिगरणिया चेव। ६–काइया किरिया दुविहा पण्णता, तं जहाप्रणवरयकायकिरिया चैव, दुपउत्तकायकिरिया चेव / ७-प्राहिगरणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संजोयणाधिकरणिया चेव, णिवत्तणाधिकरणिया चेव / ८-दो किरियानो पण्णत्ताओ तं जहा-पायोसिया चेव, पारियावणिया चेव / -पाश्रोसिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहाजीवपासोसिया चेव, अजोवपासोसिया चेव / १०–पारियावणिया किरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सहत्थपारियावणिया चेव, परहत्थपारियावणिया चेव / क्रिया दो प्रकार की कही गई है--जीवक्रिया (जीव की प्रवृत्ति) और अजीवक्रिया (पुद्गल वर्गणानों की कर्मरूप में परिणति) (2) / जीवक्रिया दो प्रकार की कही गई है। सम्यक्त्वक्रिया (सम्यग्दर्शन बढ़ाने वाली क्रिया) और मिथ्यात्वक्रिया (मिथ्यादर्शन बढ़ाने वाली क्रिया) (3) / अजीव क्रिया दो प्रकार की होती है-ऐपिथिकी (वीतराग को होने वाली कर्मास्रवरूप क्रिया) और साम्परायिकी (सकषाय जीव को होने वाली कर्मास्रवरूप क्रिया) (4) / पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है---कायिकी (शारीरिक क्रिया) और प्राधिकरणिकी (अधिकरण-शस्त्र आदि की प्रवृत्तिरूप क्रिया ) (5) / कायिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है। ---अनुपरतकायक्रिया (विरति-रहित व्यक्ति की शारीरिक प्रवृत्ति) और दुष्प्रयुक्त कायक्रिया (इंद्रिय और मन के विषयों में आसक्त प्रमत्तसंयत की शारीरिक प्रवृत्तिरूप क्रिया) (6) / प्राधिकरणिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है--संयोजनाधिकरणिकी क्रिया (पूर्वनिर्मित भागों को जोड़कर शस्त्र-निर्माण करने की क्रिया) और निर्वर्तनाधिकरणिकी क्रिया (नये सिरे से शस्त्र-निर्माण करने की क्रिया) (7) / पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है—प्रादोषिकी (मात्सर्यभावरूप क्रिया) और पारितापनिकी (दूसरों को सन्ताप देने वाली क्रिया) (8) / प्रादोषिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई हैजीवप्रादोषिकी (जीव के प्रति मात्सर्यभावरूप क्रिया) और अजीवप्रादोषिकी (अजीव के प्रति मात्सर्य भावरूप क्रिया) है। पारितापनिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है-स्वहस्तपारितापनिकी (अपने हाथ से स्वयं को या दूसरे को परिताप देने रूप क्रिया) और परहस्तपारितापनिकी (दूसरे व्यक्ति के हाथ से स्वयं को या अन्य को परिताप दिलानेवाली क्रिया) (10) / ११-दो किरियानो पण्णत्तानो, तं जहा-पाणातिवायकिरिया चेव, अपच्चक्खाणकिरिया चेव। १२–पाणातिवायकिरिया दुविहा पण्णता, तं जहा-सहत्थपाणातिवायकिरिया चेव, परहत्थपाणातिवायकिरिया चेव / १३---अपच्चक्खाणकिरिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहाजीवप्रपच्चक्खाणकिरिया चेव, अजीवअपच्चक्खाणकिरिया चैव / पुनः क्रिया दो प्रकार की कही गई है-प्राणातिपात क्रिया (जीव-घात से होने वाला कर्मबन्ध) / और अप्रत्याख्यान क्रिया (अविरति से होनेवाला कर्म-बन्ध) (11) / प्राणातिपात क्रिया दो प्रकार की कही गई है--स्वहस्तप्राणातिपात क्रिया (अपने हाथ से अपने या दूसरे के प्राणों का घात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org