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________________ [ 741 दशम स्थान ] स्फोट उत्पन्न होते हैं। वे स्फोट फूटते हैं, तब उनमें से पुल (फुसियां) निकलती हैं। वे फूटती हैं और फूटती हुई उस तेज से उसे भस्म कर देती हैं। 10. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की प्रत्याशातना करता हुआ उस पर तेज फेंकता है। वह तेज उस श्रमण-माहन के शरीर पर आक्रमण नहीं कर पाता, प्रवेश नहीं कर पाता है। तब वह उसके ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर आता-जाता है, दाएं-बाएं प्रदक्षिणा करता है और यह सब करके ऊपर आकाश में चला जाता है। वहाँ से लौटकर उस श्रमणमाहन के प्रबल तेज से प्रतिहत होकर वापिस उसी फेंकनेवाले के पास चला जाता है और उसके शरीर में प्रवेश कर उसे उसकी तेजोलब्धि के साथ भस्म कर देता है, जिस प्रकार मंखली पुत्र गोशालक के तपस्तेज ने उसी को भस्म कर दिया (मंखलोपुत्र गोशालक ने क्रोधित होकर भगवान महावीर पर तेजोलेश्या का प्रयोग किया था। किन्तु वीतरागता के प्रभाव से उसने वापिस लौटकर गोशालक को ही भस्म कर दिया था / चरमशरीरी श्रमणों पर तेजोलेश्या का असर नहीं होता है / ) आश्चर्यक-सूत्र १६०-दस अच्छेरगा पण्णता, त जहासंग्रहणीनाथा उवसग्ग गम्भहरणं, इत्थीतित्थं प्रभाविया परिसा। कण्हस्स प्रवरकंका, उत्तरणं चंदसूराणं // 1 // हरिवंसकुलुप्पत्ती, चमरुप्पातो य अट्टसयसिद्धा। अस्संजतेसु पूपा, दसवि अणंतेण कालेण // 2 // दश आश्चर्यक कहे गये हैं। जैसे१. उपसर्ग तीर्थंकरों के ऊपर उपसर्ग होना / 2. गर्भहरण-भगवान् महावीर का गर्भापहरण होना / 3. स्त्री का तीर्थकर होना / 4. प्रभावित परिषत्--तीर्थकर भगवान् महावीर का प्रथम धर्मोपदेश विफल हुया अर्थात् उसे सुनकर किसी ने चारित्र अंगीकार नहीं किया / 5. कृष्ण का अमरकंका नगरी में जाना / 6. चन्द्र और सूर्य देवों का विमान-सहित पृथ्वी पर उतरना / 7. हरिवंश कुल की उत्पत्ति / 8. चमर का उत्पात-चमरेन्द्र का सौधर्मकल्प में जाना / 6. एक सौ पाठ सिद्ध–एक समय में एक साथ एक सौ आठ जीवों का सिद्ध होना / 10. असंयमी की पूजा / ये दशों आश्चर्य अनन्तकाल के व्यवधान से हुए हैं (160) / विवेचन-जो घटनाएं सामान्य रूप से सदा नहीं होतीं, किन्तु किसी विशेष कारण से चिरकाल के पश्चात् होती हैं, उन्हें आश्चर्य-कारक होने से 'पाश्चर्यक' या अच्छेरा कहा जाता है। जैनशासन में भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान् महावीर के समय तक ऐसी दश अद्भुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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