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________________ 740 ] [ स्थानांगसूत्र दश कारणों से श्रमण-माहन (अति-नाशातना करने वाले को) तेज से भस्म कर डालता है / जैसे-- 1. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धि से सम्पन्न) श्रमण-माहन की तीव्र पाशातना करता है, वह उस पाशातना से पीड़ित होता हुआ उस व्यक्ति पर क्रोधित होता है। तब उसके शरीर से तेज निकलता है / वह तेज उस उपसर्ग करने वाले को परितापित करता है और उसे भस्म कर देता है। 2. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की प्रत्याशातना करता है, उसकी अत्याशातना करने पर कोई देव कुपित होता है / तब उस देव के शरीर से तेज निकलता है। वह तेज उस उपसर्ग करने वाले को परितापित करता है और परितापित कर उस तेज से उसे भस्म कर देता है। 3. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की प्रत्याशातना करता है। उसके प्रत्याशातना से परिकुपित वह श्रमण-माहन और परिकुपित देव दोनों ही उसे मारने की प्रतिज्ञा करते हैं। तब उन दोनों के शरीर से तेज निकलता है / वे दोनों तेज उस उपसर्ग करने वाले व्यक्ति को परितापित करते हैं और परितापित करके उसे उस तेज से भस्म कर देते हैं। 4. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोल ब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की प्रत्याशातना करता है। वह उस प्रत्याशातना से परिकुपित होता है, तब उसके शरीर से तेज निकलता है, उससे उस व्यक्ति के शरीर में स्फोट (फोड़े-फफोले) उत्पन्न होते हैं। वे फोड़े फूटते हैं और फूटते हुए उसे उस तेज से भस्म कर देते हैं। . 5. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की प्रत्याशातना करता है / उसके अत्याशातना करने पर कोई देव परिकुपित होता है, तब उसके शरीर से तेज निकलता है, उससे उस व्यक्ति के शरीर में स्फोट उत्पन्न होते हैं / वे स्फोट फूटते हैं और उसे उस तेज से भस्म कर देते हैं। 6. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोल ब्धिसम्पन्न) श्रमण-माहन की प्रत्याशातना करता है, उसके प्रत्याशातना करने पर परिकुपित वह श्रमण-माहन और परिकुपित देव ये दोनों ही उसे मारने की प्रतिज्ञा करते हैं। तब उन दोनों के शरीरों से तेज निकलता है। उससे उस व्यक्ति के शरीर में स्फोट उत्पन्न होते हैं / वे स्फोट फूटते हैं और फूटते हुए उसे उस तेज से भस्म कर देते हैं। 7. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण माहन की प्रत्याशातना करता है। उसके प्रत्याशातना करने पर वह उस पर परिकुपित होता है / तब उसके शरीर से तेज निकलता है। के शरीर में स्फोट उत्पन्न होते हैं। वे स्फोट फटते हैं, तब उनमें से पूल (फ सियां) उत्पन्न होती हैं / वे फूटती हैं और फूटती हुई उस तेज से उसे भस्म कर देती हैं। 8. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण माहन की प्रत्याशातना करता है। उसके प्रत्याशातना करने पर कोई देव परिकुपित होता है, तब उसके शरीर से तेज निकलता है, उससे उस व्यक्ति के शरीर में स्फोट उत्पन्न होते हैं। वे स्फोट फूटते हैं, तब उनमें पुल (फुसियां) निकलती हैं / वे फूटती हैं और फूटती हुई उस तेज से उसे भस्म कर देती हैं। 6. कोई व्यक्ति तथारूप (तेजोलब्धिसम्पन्न) श्रमण माहन की प्रत्याशातना करता है / उसके प्रत्याशातना करने पर परिकुपित वह श्रमण-माहन और परिकुपित देव दोनों ही उसे मारने की प्रतिज्ञा करते हैं। तब उन दोनों के शरीरों से तेज निकलता है। उससे उस व्यक्ति के शरीर में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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