________________ दशम स्थान ] [735 कुलकर-सूत्र १४३-जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे तीताए उस्सप्पिणीए बस कुलगरा हुत्था, तं जहा-- संग्रहणी-गाथा सयंजले सयाऊय, अणंतसेणे य अजितसेणे य / कक्फसेणे भीमसेणे, महाभीमसेणे य सत्तमे // 1 // दढरहे दसरहे, सयरहे। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, अतीत उत्सर्पिणी में दश कुलकर उत्पन्न हुए थे। जैसे१. स्वयंजल, 2. शतायु 3. अनन्तसेन, 4. अजितसेन, 5. कर्कसेन, 6. भीमसेन, 7. महाभीमसेन, 8. दृढरथ, 6. दशरथ. 10. शतरथ (143) / १४४-जंबद्दीवे दीवे भारहे वासे प्रागमीसाए उस्सप्पिणीए दस कुलगरा भविस्संति, तं जहा-सोमंकरे, सोमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहणे, संमुती, पडिसुते, बढधणू, दसधणू, सतधणू। जम्बुद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, आगामी उत्सर्पिणी में दश कुलकर होंगे / जैसे१. सीमकर, 2. सीमन्धर, 3. क्षेमकर, 4. क्षेमन्धर, 5. विमलवाहन, 6. सन्मति, 7. प्रतिश्रु त 8. दृढधनु, 6. दशधनु 10. शतधनु (144) / वक्षस्कार-सूत्र १४५---जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पब्वयस्स पुरस्थिमे णं सीताए महाणईए उभोकले दस वक्खारपब्वता पण्णत्ता, तं जहा-मालवंते, चित्तकूडे, पम्हकूडे, (लिणकूडे, एगसेले, तिकूडे, वेसमणकडे, अंजणे, मायंजणे), सोमणसे। ____ जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व में शीता महानदी के दोनों कूलों पर दश वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं / जैसे----- 1. माल्यवान कूट, 2. चित्रकूट, 3. पक्ष्मकूट 4. नलिनकूट 5. एकशैल 6. त्रिकूट 7. वैश्रमणकूट 8. अंजनकूट 6. मातांजनकूट, 10. सौमनसकूट (145) / १४६-जंबहीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सोप्रोदाए महाणईए उभोकले दस वक्खारपवता पण्णत्ता, तं जहा--विज्जुप्पभे, (अंकावती, पम्हावतो, प्रासीविसे, सुहावहे, चंदपवते, सूरपन्वते, गागपन्वते, देवपचते), गंधमायणे / जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, मन्दर पर्वत के पश्चिम में शीतोदा महानदी के दोनों कूलों पर दश वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं। जैसे--- 1. विद्युत्प्रभकूट, 2. अङ्कावतीकूट, 3. पक्ष्मावतीकूट, 4. आशीविषकूट, 5. सुखावहकूट, 6. चन्द्रपर्वतकूट 7. सूरपर्वतकूट, 8. नागपर्वतकूट, 6. देवपर्वतकूट, 10. गन्धमादनकूट १४७–एवं धायइसंडपुरस्थिमद्धवि वक्खारा भाणियन्वा जाव पुक्खरवरदीवडपच्चत्थिमद्धे / इसी प्रकार धातकोषण्ड के पूर्वार्ध और पश्चिमा में,तथा पुष्करवर द्वीपार्ध के पूवार्ध-पश्चिमाध में शीता और शीतोदा महानदियों के दोनों कूलों पर दश-दश वक्षस्कार पर्वत जानना चाहिए (147) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org