________________ 734 ] [ स्थानांगसूत्र दश निमित्तों से अवगाढ दुःषमा-काल का आगमन जाना जाता है / जैसे१. अकाल में वर्षा होने से, 2. समय पर वर्षा न होने से, 3. असाधुओं की पूजा होने से, 4. साधुओं की पूजा न होने से, 5. गुरुजनों के प्रति मनुष्यों का मिथ्या या असद् व्यवहार होने से, 6. अमनोज्ञ शब्दों के हो जाने से, 7. अमनोज्ञ रूपों के हो जाने से, 8. अमनोज्ञ गन्धों के हो जाने से, 6. अमनोज्ञ रसों के हो जाने से, 10. अमनोज्ञ स्पर्शो के हो जाने से (140) / सुषमा-लक्षण-पून १४१-दसहि ठाणेहि प्रोगाढं सुसमं जाणेज्जा, तं जहा–प्रकाले ण वरिसति, (काले वरिसति, असाहू ण पूइज्जति, साहू पुइज्जंति, गुरुसु जणो सम्म पडिवण्णो, मणुण्णा सद्दा, मणुण्णा रूवा, मणुण्णा गंधा, मणुष्णा रसा), मणुष्णा फासा / दश निमित्तों से सुषमा काल की अवस्थिति जानी जाती है / जैसे१. अकाल में वर्षा न होने से, 2. समय पर वर्षा होने से, 3. असाधुओं की पूजा नहीं होने से, 4. साधुओं को पूजा होने से, 5. गुरुजनों के प्रति मनुष्य का सद्व्यवहार होने से, 6. मनोज्ञ शब्दों के होने से, 7. मनोज्ञ रूपों के होने से, 8. मनोज्ञ गन्धों के होने से, 6. मनोज्ञ रसों के होने से, 10. मनोज्ञ स्पर्शों के होने से (141) / [कल्प]-वृक्ष-सूत्र १४२-सुसमसुसमाए णं समाए दसविहा रुक्खा उवभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, तं जहासंग्रहणी-गाथा मतंगया य भिंगा, तुडितंगा दीव जोति चित्तंगा। चित्तरसा ।मणियंगा, गेहागारा अणियणा य // 1 // सुषम-सुषमा काल में दश प्रकार के वृक्ष उपभोग के लिए सुलभता से प्राप्त होते हैं / जैसे१. मदांग-मादक रस देने वाले / 2. भृग-भाजन-पात्र आदि देने वाले / 3. त्रुटितांग-वादित्रध्वनि उत्पन्न करने वाले वृक्ष / 4. दीपांग--प्रकाश करने वाले वृक्ष / 5. ज्योतिरंग-उष्णता उत्पन्न करने वाले वृक्ष / 6. चित्रांग-अनेक प्रकार की माला-पुष्प उत्पन्न करने वाले वृक्ष / 7. चित्ररस--अनेक प्रकार के मनोज्ञ रस वाले वृक्ष / 8. मणि-अंग-प्राभरण प्रदान करने वाले वृक्ष / 6. गेहाकार-घर के आकार वाले वृक्ष। 10. अनग्न-नग्नता को ढाकने वाले वृक्ष (142) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org