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________________ 728 ] [ स्थानाङ्गसूत्र अनुत्तरोपपातिकदशा के दश अध्ययन कहे गये हैं / जैसे१. ऋषिदास, 2. धन्य 3. सुनक्षत्र, 4. कात्तिक, 5. संस्थान, 6. शालिभद्र, 7. आनन्द, 8. तेतली, 6. दशार्णभद्र, 10. अतिमुक्त (114) / ११५-पायारदसाणं दस अज्झयणा पण्णता, तं जहा–बीसं असमाहिट्ठाणा, एगवीसं सबला, तेत्तीसं आसायणाओ, अदविहा गणिसंपया, दस चित्तसमाहिट्ठाणा, एगारस उवासगपडिमानो, बारस भिक्खुपडिमानो, पज्जोसवणाकप्पो, तीसं मोहणिज्जट्ठाणा, प्राजाइट्ठाणं / प्राचारदशा (दशाश्र तस्कन्ध) के दश अध्ययन कहे गये हैं / जैसे१. बीस असमाधिस्थान, 2. इक्कीस शबलदोष, 3. तेतीस पाशातना, 4. अष्टविध गणिसम्पदा, 5. दश चित्तसमाधिस्थान, 6. ग्यारह उपासकप्रतिमा 7. बारह भिक्षुप्रतिमा, 8. पर्युषणाकल्प, 6 तीस मोहनीयस्थान, 10. प्राजातिस्थान (115) / ११६-पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-उवमा, संखा, इसिभासियाई, प्रायरियभासियाई, महावीरभासिमाई, खोमगपसिणाई, कोमलपसिणाई, अद्दागपसिणाई, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई। प्रश्नव्याकरणदशा के दश अध्ययन कहे गये हैं / जैसे१. उपमा, 2. संख्या, 3. ऋषिभाषित, 4. प्राचार्यभाषित, 5. महावीरभाषित 6. क्षौमकप्रश्न, 7. कोमलप्रश्न. 8. प्रादर्शप्रश्न, 6. अंगुष्ठप्रश्न, 10. बाहुप्रश्न (116) / विवेचन–प्रस्तुत सूत्र में प्रश्नव्याकरण के जो दश अध्ययन कहे गए हैं उनका वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरण से कुछ भी सम्बन्ध नहीं है / प्रतीत होता है कि मूल प्रश्नव्याकरण में नाना विद्यानों और मंत्रों का निरूपण था, अतएव उसका किसी समय विच्छेद हा गया और उसकी स्थान लिए नवीन प्रश्नव्याकरण की रचना की गई, जिसमें पांच प्रास्त्रवों और पांच संवरों का विस्तृत वर्णन है। ११७---बंधदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा बंधे य मोक्खे य देवडि, दसारमंडलेवि य / पायरियविप्पडिवत्ती, उबझाविप्पडिवत्ती, भावणा, विमुत्ती, सातो, कम्मे / बन्धदशा के दश अध्ययन कहे गये गये हैं। जैसे-- 1. बन्ध, 2. मोक्ष, 3. देवधि, 4. दशारमण्डल, 5. आचार्य-विप्रतिपत्ति. 6. उपाध्यायविप्रतिपत्ति, 7. भावना. 6. विमुक्ति, 6. सात 10. कर्म (117) / ११८-दोगेद्धिदसाणं दस अज्झयणा पण्णता, तं जहा–वाए, विवाए, उववाते, सुखेत्ते, कसिणे, बायालीसं सुमिणा, तीसं महासुमिणा, बावरि सव्वसुमिणा / हारे रामगुत्ते य, एमेते दस प्राहिता। द्विगृद्धिदशा के दश अध्ययन कहे गये हैं / जैसे१. बाद, 2. विवाद, 3. उपपात, 4. सुक्षेत्र, 5. कृत्स्न, 6. बयालीस स्वप्न, 7. तीस महास्वप्न. 8. बहत्तर सर्वस्वप्न, 6. हार, 10. रामगुप्त (118) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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