________________ 726] [ स्थाना ङ्गसूत्र कहते हैं / भूकम्प आदि पाने के पूर्व ही ओघसंज्ञा से उसका अाभास पाकर अनेक पशु-पक्षी सुरक्षित स्थानों को चले जाते हैं। १०६–णेरइयाणं दस सण्णाप्रो एवं चेव / इसी प्रकार नारकों से दश संज्ञाएं कही कई हैं (106) / १०७-एवं णिरंतरं जाव वेमाणियाणं / इसी प्रकार वैमानिकों तक सभी दण्डक वाले जीवों को दश-दश संज्ञाएं जाननी चाहिए (107) / वेदना-सूत्र १०८णेरइया णं दसविधं वेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा-सीतं, उसिणं, खुध, पिवासं, कंडु, परज्झ, भयं, सोगं, जरं, वाहि / नारक जीव दश प्रकार की वेदनामों का अनुभव करते रहते हैं। जैसे 1. शीत वेदना, 2. उष्ण वेदना, 3. क्षुधा वेदना, 4. पिपासा वेदना, 5. कण्डू वेदना, (खुजली का कष्ट) 6. परजन्य वेदना (परतंत्रता का या परजनित कष्ट) 7. भय वेदना, 8. शोक वेदना, 6. जरा वेदना, 10. व्याधि वेदना (108) / छद्मस्थ सूत्र १०६-दस ठाणाई छ उमत्थे सवभावेणं ण जाति ण पासति, तं जहा-धम्मत्थिकायं, (अधम्मस्थिकार्य, प्रागासस्थिकायं, जोवं असरोरपडिबद्ध, परमाणु गोग्गलं, सई, गंध), वातं, अयं जिणे भविस्सति वा ण वा भविस्सति, अयं सम्वदुक्खाणमंतं करेस्सति वा ण वा करेस्सति / एताणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे परहा (जिणे केवली सम्वभावेणं जाणइ पासइ, तं जहाधम्मत्थिकायं अधम्मस्थिकायं प्रागासत्यिकायं, जोवं असरीरपडिबद्ध, परमाणुपोग्गलं, सई, गंध, वातं, अयं जिणे भविस्सति वा ण वा भविस्सति), अयं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सति वा ण वा करेस्सति / छद्मस्थ जीव दश पदार्थों को सम्पूर्ण रूप से न जानता है, न देखता है / जैसे 1. धर्मास्तिकाय, 2. अधर्मास्तिकाय, 3. ग्राकाशास्तिकाय, 4. शरीरमुक्त जीव, 5. परमाणु-पुद्गल, 6. शब्द, 7. गन्ध, 8. वायु, 6. यह जिन होगा, या नहीं, 10, यह सभी दुःखों का अन्त करेगा, या नहीं (106) / किन्तु विशिष्ट ज्ञान और दर्शन के धारक अर्हत्, जिन, केवली उन्हीं दश पदार्थों को सम्पूर्ण रूप से जानते-देखते हैं / जैसे 1. धर्मास्तिकाय, 2. अधर्मास्तिकाय, 3. आकाशास्तिकाय, 4. शरीर-मुक्त जीव, 5. परमाणु-पुद्गल, 6. शब्द, 7. गन्ध, 8. वायु, 6. यह जिन होगा, या नहीं, 10. यह सभी दुःखों का अन्त करेगा, या नहीं। दशा-सूत्र ११०-दस दसानो पणतामो, तं जहा-कम्मविवागदसायो, उवासगदसामो, अंतगड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org