________________ 724] [स्थानाङ्गसूत्र ___ उपर्युक्त स्वप्नों का फल श्रमण भगवान् महावीर ने इस प्रकार प्राप्त किया-- 1.. श्रमण भगवान् महावीर महान् घोर रूप वाले दीप्तिमान् एक ताल पिशाच को स्वप्न में पराजित हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए / उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर ने मोहनीय कर्म को मूल से उखाड़ फेंका। 2. श्रमण भगवान् महावीर श्वेत पंखों वाले एक महान् पुस्कोकिल को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान महावीर शुक्लध्यान को प्राप्त होकर विचरने लगे। 3. श्रमण भगवान् महावीर चित्र-विचित्र पंखों वाले एक महान् पुस्कोकिल को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर ने स्व-समय और पर-समय का निरूपण करने वाले द्वादशाङ्ग गणिपिटक का व्याख्यान किया, प्रज्ञापन किया, प्ररूपण किया, दर्शन, निदर्शन, और उपदर्शन कराया। वह द्वादशाङ्ग गणिपिटक इस प्रकार है 1. आचाराङ्ग, 2. सूत्रकृताङ्ग, 3. स्थानाङ्ग, 4. समवायाङ्ग, 5. व्याख्या-प्रज्ञप्ति-अंग, 6. ज्ञाताधर्मकथाङ्ग, 7. उपासकदशाङ्ग, 8. अन्तकृद्दशाङ्ग, 6. अनुत्तरोपपातिकदशाङ्ग, 10. प्रश्नव्याकरणाङ्ग, 11. विपाकसूत्राङ्ग, और 12. दृष्टिवाद। 4. श्रमण भगवान् महावीर सर्वरत्नमय दो बड़ी मालाओं को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर ने दो प्रकार के धर्म की प्ररूपणा की / जैसे अगारधर्म (श्रावकधर्म) और अनगारधर्म (साधुधर्म)। 5. श्रमण भगवान् महावीर एक महान् श्वेत गोवर्ग को स्वप्न में देखकर प्रतिबद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर का चार वर्ण से व्याप्त संघ हुआ / जैसे-- 1. श्रमण, 2. श्रमणी, 3. श्रावक, 4. श्राविका / 6. श्रमण भगवान् महावीर सर्व ओर से प्रफुल्लित कमलों वाले एक महान् सरोवर को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान महावीर ने चार प्रकार के देवों की प्ररूपणा की। जैसे 1. भवनवासी, 2. वानव्यन्तर, 3. ज्योतिष्क और 4. वैमानिक / 7. श्रमण भगवान् महावीर स्वप्न में एक महान् छोटी-बड़ी लहरों से व्याप्त महासागर को स्वप्न में भुजाओं से पार किया हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए, उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर ने अनादि, अनन्त, प्रलम्ब और चार अन्त (गति) वाले संसार रूपी कान्तार (महावन) या भवसागर को पार किया। 8. श्रमण भगवान महावीर तेज से जाज्वल्यमान एक महान् सूर्य को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर को अनन्त, अनुत्तर, नियाधात, निरावरण, पूर्ण, प्रतिपूर्ण केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त हुआ। 6. श्रमण भगवान् महावीर हरित और वैडूर्य वर्ण वाले अपने प्रांत-समूह के द्वारा मानुषोत्तर पर्वत को सर्व ओर से आवेष्टित-परिवेष्टित किया हुआ स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान महावीर की देव, मनुष्य और असुरों के लोक में उदार, कीत्ति, वर्ण, शब्द और श्लाघा व्याप्त हुई—कि श्रमण भगवान् महावीर ऐसे महान् हैं, श्रमण भगवान् महावोर ऐसे महान् हैं, इस प्रकार से उनका यश तीनों लोकों में फैल गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org