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________________ दशम स्थान ] [723 5. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं सेत गोवरगं सुमिणे (पासित्ता णं) पडिबद्ध, तण्णं समणस्स भगवनो महावीरस्स चाउवण्णाइण्णे संघे, त जहा-समणा, समणीग्रो, सावगा, सावियायो। 6. जपणं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं पउमसरं (सवनो समंता कुसुमित सुमिणे पासित्ता णं) पडिबुद्ध, तणं समणे भगवं महावीरे चउविहे देवे पण्णवेति, त जहा-- भवणवासी, वाणमंतरे, जोइसिए, वेमाणिए / 7. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं सागरं उम्मी-बोची-(सहस्स-कलित भुयाहि तिण्णं सुमिणे पासित्ता ण) पडिबुद्ध, तं णं समणेणं भगवता महावीरेणं प्रणादिए प्रणवदग्गे दीहमद्ध चाउरते संसारकंतारे तिण्णे। 8. जणं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं दिणयरं (तेयसा जलंत सुमिणे पासित्ता णं) पडिबुद्ध, तण्णं समणस्स भगवो महावीरस्स अणते अणुत्तरे (णिवाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदसणे) समुप्पण्णे। 6. जण्णं समणे भगवं महावीरे एगं च गं महं हरि-वेरुलिय (वण्णाभेणं णियएणमंतेणं माणु सुत्तरं पन्वत सव्वतो समंता प्रावेढियं परिवेढियं सुमिणे पासित्ता णं) पडिबुद्ध तण्णं समणस्स भगवतो महावीरस्स सदेवमणुयासुरलोगे उराला कित्ति-वण्ण-सद्द-सिलोगा परिगुव्वंति–इति खलु समणे भगवं महावीरे, इति खलु समणे भगवं महावीरे। 10. जणं समणे भगवं महावीरे एगं च णं महं मंदरे पव्वते मंदरचूलियाए उरि (सीहासण वरगयमत्ताणं सुमिणे पासित्ता णं) पडिबुद्ध, तण्णं समणे भगवं महाबोरे सदेवमणुयासुराए परिसाए मझगते केवलिपण्णत्तं धम्म प्राघवेति पण्णवेत्ति (परूवेति दंसेति णिदंसेति) उवदंसेति। श्रमण भगवान् महावीर छप्रस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर प्रतिबुद्ध हए। जैसे 1. एक महान् घोर रूप वाले, दोप्तिमान् ताड़ वृक्ष जैसे लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित हुआ देखकर प्रतिबद्ध हुए। 2. एक महान् श्वेत पंख वाले पुस्कोकिल को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। 3. एक महान् चित्र-विचित्र पंखों वाले पुस्कोकिल को स्पप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। 4. सर्वरत्नमयी दो बड़ी मालाओं को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। 5. एक महान् श्वेत गोवर्ग को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए।। 6. एक महान्, सर्व ओर से प्रफुल्लित कमल वाले सरोवर को देखकर प्रतिबुद्ध हुए। 7. एक महान्, छोटी-बड़ी लहरों से व्याप्त महासागर को स्वप्न में भुजाओं से पार किया हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए। 8. एक महान् , तेज से जाज्वल्यमान सूर्य को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। 8. एक महान, हरित और वैड्यं वर्ण वाले अपने प्रांत-समूह के द्वारा मानुषोत्तर पर्वत को सर्व ओर से आवेष्टित-परिवेष्टित किया हुआ स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए। 10. मन्दर-पर्वत पर मन्दर-चूलिका के ऊपर एक महान् सिंहासन पर अपने को स्वप्न में बैठा हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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