________________ दशम स्थान] [ 721 प्रत्याख्यान-सूत्र १०१-दसविधे पच्चक्खाणे पणत्ते, तं जहा अणागयमतिकतं, कोडोसहियं णियंटितं चेव / सागारमणागारं परिमाणकर्ड णिरबसेसं / / संकेयगं चेव प्रद्धाए, पच्चक्खाणं दसविहं तु // 1 // प्रत्याख्यान दश प्रकार का कहा गया है / जैसे१. अनागत-प्रत्याख्यान--प्रागे किये जाने वाले तप को पहले करना। 2. अतिक्रान्त-प्रत्याख्यान-जो तप कारणवश वर्तमान में न किया जा सके, उसे भविष्य में करना। 3. कोटिसहित-प्रत्याख्यान -जो एक प्रत्याख्यान का अन्तिम दिन और दूसरे प्रत्याख्यान का आदि दिन हो, वह कोटिसहित प्रत्याख्यान है। 4. नियंत्रित-प्रत्याख्यान-नोरोग या सरोग अवस्था में नियंत्रण या नियमपूर्वक अवश्य ही किया जानेवाला तप / 5. सागार-प्रत्याख्यान-आगार या अपवाद के साथ किया जाने वाला तप / 6. अनागार-प्रत्याख्यान-- अपवाद या छूट के विना किया जाने वाला तप / 7. परिमाणकृत-प्रत्याख्यान-दत्ति, कवल, गृह, द्रव्य, भिक्षा आदि के परिमाणवाला प्रत्याख्यान / 8. निरवशेष-प्रत्याख्यान—चारों प्रकार के आहार का सर्वथा परित्याग / / है. संकेत-प्रत्याख्यान-संकेत या चित्र के साथ किया जाने वाला प्रत्याख्यान / 10. अद्धा-प्रत्याख्यान-मुहूर्त, प्रहर प्रादि काल की मर्यादा के साथ किया जाने वाला / प्रत्याख्यान (101) / सामाचारी-सूत्र १०२–दसविहा सामायारी पण्णता, तं जहा-- संग्रह-श्लोक इच्छा मिच्छा तहक्कारो, आवस्सिया य णिसीहिया / प्रापुच्छणा य पडिपुच्छा, छंदणा य णिमंतणा / / उवसंपया य काले, सामायारी दसविहा उ // 1 // सामाचारो दश प्रकार की कही गई है / जैसे-- 1. इच्छा-समाचारी-कार्य करने या कराने में इच्छाकार का प्रयोग / 2. मिच्छा-समाचारी-भूल हो जाने पर मेरा दुष्कृत मिथ्या हो ऐसा बोलना / 3. तथाकार-समाचारी-प्राचार्य के वचन को 'तह' त्ति कहकर स्वीकार करना / 4. आवश्यकी-समाचारी---उपाश्रय से बाहर जाते समय 'आवश्यक कार्य के लिए जाता हूं,' ऐसा बोलकर जाना। 5. नैषेधिकी-समाचारी कार्य से निवृत्त होकर के आने पर मैं निवृत्त होकर आया हूं' ऐसा बोलकर उपाश्रय में प्रवेश करना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org