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________________ नवम स्थान | [685 कौशलिक (कोशला नगरी में उत्पन्न) अर्हन ऋषभ ने इस अवसर्पिणी का नौ कोड़ाकोड़ी सागरोपम काल व्यतीत होने पर तीर्थ का प्रवर्तन किया (66) / [अन्तर्वीप-सूत्र ६७-घणदंत-लट्ठदंत-गूढदंत-सुद्धदंतदीवा णं दीवा णव-णव जोयणसताइं पायामविक्खंभेणं पण्णत्ता। ___ घनदन्त, लष्टदन्त, गूढदन्त और शुद्धदन्त, ये द्वीप (अन्तर्वीप) नौ-नौ सौ योजन लम्बे-चौड़े कहे गये हैं / (67) शुक्रग्रह-वीथी-सूत्र ६८-सुक्कस्स णं महागहस्स णव वोहोरो पण्णत्तायो, तं जहा हयवीही, गयबोही, णागवीही, वसहवीही, गोवीही, उरगवीही, अयवीही, मियवीही, वेसाणरवीही। शुक्र महाग्रह की नौ वीथियां (परिभ्रमण की गलियाँ) कही गई हैं। जैसे 1. हयवीथि, 2. गजवीथि, 6. नागवीथि, 4. वृषभवीथि, 5. गोवीथि, 6. उरगवीथि, 7. अजवीथि, 8. मृगवीथि, 6. वैश्वानर वीथि (68) / कर्म-सूत्र ६६-णवविधे णोकसायवेयणिज्जे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा--इत्थिवेए, पुरिसवेए, णपुंसकवेए, हासे, रती, अरती, भये, सोंगे, दुगुछा। नोकषाय वेदनीय कर्म नौ प्रकार का कहा गया है / जैसे 1. स्त्रीवेद, 2. पुरुष वेद, 3. नपुसक वेद, 4. हास्य वेदनीय, 5. रति वेदनीय, 6. अरति वेदनीय, 7. भय वेदनीय, 8. शोक वेदनीय 6. जुगुप्सा वेदनीय (66) / कुलकोटि-सूत्र ७०–चरिदियाणं णव जाइ-कुलकोडि-जोणिपमह-सयसहस्सा पण्णत्ता। चतुरिन्द्रिय जीवों की नौ लाख जाति-कुलकोटियां कही गई हैं (70) / ७१–भुयगपरिसप्प-थलयर-पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं णव जाइ-कुलकोडि-जोणिपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता। पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक स्थलचर-भुजग-परिसों की नौ लाख जाति-कुलकोटियां कही गई हैं (71) / पापकर्म-सूत्र ७२-जीवा णं णवट्ठाणणिवत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा--पुढविकाइयणिन्वत्तिते, (ग्राउकाइयनिवत्तिते, तेउकाइयणिन्वत्तिते, वाउकाइयणिन्वतिते, वणस्सइकाइयणिव्वत्तिते, बेइंदियणिबत्तिते, तेइंदियणिवत्तिते, चरिदियणिवत्तिते) पंचिदियणिव्वत्तिते। एवं-चिण-उवचिण (बंध-उदीर-वेद तह) णिज्जरा चेव / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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