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________________ 684 ] [ स्थानाङ्गसूत्र आर्यो ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे शय्यातरपिण्ड और राजपिण्ड का प्रतिषेध किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए शय्यातरपिण्ड और राजपिण्ड का प्रतिषेध करेंगे। आर्यो ! मेरे जैसे नौ गण और ग्यारह गणधर हैं, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म के भी नौ गण और ग्यारह गणधर होंगे। आर्यो ! जैसे मैं तीस वर्ष तक अगारवास में रहकर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रवजित हुअा, बारह वर्ष और तेरह पक्ष तक छद्मस्थ-पर्याय को प्राप्त कर, तेरह पक्षों से कम तीस वर्षों तक केवलि-पर्याय पाकर, बयालीस वर्ष तक श्रामण्य-पर्याय पालन कर सर्व प्राय बहत्तर वर्ष पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वृत्त होकर सर्व दुःखों का अन्त करूंगा / इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी तीस वर्ष तक अगारवास में रह कर मुण्डित हो अगार से अनगरिता में प्रव्रजित होंगे, बारह वर्ष तेरह पक्ष तक छद्मस्थ-पर्याय को प्राप्त कर, तेरह पक्षों से कम तीस वर्षों तक केवलिपर्याय पाकर बयालीस वर्ष तक श्रामण्य-पर्याय पालन कर, बहत्तर वर्ष की सम्पूर्ण प्राय भोग कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वृत्त होकर सर्वदुःखों का अन्त करेंगे। जिस प्रकार के शील-समाचार वाले अर्हत् तीर्थकर महावीर हुए हैं, उसी प्रकार के शीलसमाचार वाले अर्हत् महापद्म होंगे। नक्षत्र--सूत्र 63 --णव णक्खता चंदस्स पच्छंभागा पण्णत्ता, तं जहासंग्रहणी-गाथा अभिई समणो धणिट्ठा, रेवति अस्सिणि मग्गसिर पूसो। हत्थो चित्ता य तहा, पच्छभागा णव हवंति // 1 // नौ नक्षत्र चन्द्रमा के पृष्ठ भाग के होते हैं, अर्थात् चन्द्रमा उनका पृष्ठ भाग से भोग करता है। जैसे 1. अभिजित, 2. श्रवण, 3. धनिष्ठा, 4. रेवती, 5. अश्विनी, 6. मृगशिर, 7. पुष्य, 8. हस्त, 8. चित्रा। विमान-सूत्र ६४--प्राणत-पाणत-प्रारणच्चुतेसु कप्पेसु विमाणा णव जोयणसयाई उड्ड उच्चत्तेणं पण्णत्ता। अानत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्पों में विमान नौ योजन ऊंचे कहे गये हैं (64) / कुलकर-सूत्र ६५–विमलवाहणे णं कुलकरे णव धणुसताई उड्ड उच्चत्तेणं हुत्था। विमलवाहन कुलकर नौ सौ धनुष ऊंचे थे (65) / तीर्यकर-सूत्र ६६-उसभेणं परहा कोसलिएणं इमोसे प्रोसप्पिणीए णहि सागरोवमकोडाकोडोहि वोइक्कंताहि तित्थे पत्तिते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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