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________________ 682] [ स्थानाङ्गसूत्र प्रियो ! हमारे राजा देवसेन के निर्मल शंखतल के समान श्वेत, चार दांत वाला हस्तिरत्न है, अत: देवानुप्रियो! हमारे राजा का तीसरा नाम 'विमलवाहन' होना चाहिए / तब से उस देवसेन राजा का तीसरा नाम 'विमलवाहन' होगा। तब वह विमलवाहन राजा तीस वर्ष तक गहवास में रहकर, माता-पिता के देवगति को प्राप्त होने पर, गुरुजनों और महत्तर पुरुषों के द्वारा अनुज्ञा लेकर शरद् ऋतु में जीतकल्पिक, लोकान्तिक देवों के द्वारा अनुत्तर मोक्षमार्ग के लिए संबुद्ध होंगे। तब वे इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मन:प्रिय, उदार, कल्याण, शिव, धन्य, मांगलिक श्रीकार-सहित वाणी से अभिनन्दित और संस्तुत होते हुए नगर के बाहर 'सुभूमिभाग' नाम के उद्यान में एक देवदूष्य लेकर मुण्डित हो अगार से अनगारिता में प्रवजित होंगे। वे भगवान् जिस दिन मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रवजित होंगे, उसी दिन वे स्वयं ही इस प्रकार का अभिग्रह ग्रहण करेंगे देवकृत, मनुष्यकृत या तिर्यग्योनिक जिस किसी प्रकार के भी उपसर्ग उत्पन्न होंगे, उन सब को मैं भली भांति से सहन करूगा, अहीन भाव से दृढता के साथ सहन करूगा, तितिक्षा करूंगा और अविचल भाव से सहूंगा। .. तब वे भगवान् (महापद्म) अनगार ईर्यासमिति से, भाषासमिति से संयुक्त होकर जैसे वर्धमान स्वामी (तपश्चरण में संलग्न हुए थे, उन्हीं के समान) सर्व अनगार धर्म का पालन करते हुए व्यापार-रहित व्युत्सृष्ट योग से युक्त होंगे। उन भगवान् महापद्म के इस प्रकार को विहार से विचरण करते हुए बारह वर्ष और तेरह पक्ष बीत जाने पर, तेरहवें वर्ष के अन्तराल में वर्तमान होने पर अनुत्तरज्ञान के द्वारा भावना अध्ययन के कथनानुसार केवल वर ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होंगे। तब वे जिन, केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी होकर नारक आदि सर्व लोकों के पर्यायों को जानेंगे-देखेंगे। वे भावना-सहित पांच महाव्रतों की, छह जीव निकायों की और धर्म की देशना करते हुए विहार करेंगे। आर्यो ! जैसे मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए एक आरम्भ-स्थान का निरूपण किया है, इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए एक प्रारम्भस्थान का निरूपण करेंगे। __ पार्यो ! मैंने जैसे श्रमण-निग्रंथों के लिए दो प्रकार के बन्धनों का निरूपण किया है, जैसे प्रेयोवन्ध और द्वषवन्धन / इसी प्रकार अर्हत महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए दो प्रकार के बन्धन कहेंगे / जैसे-प्रयोबन्धन और द्वेषबन्धन / आर्यो ! जैसे मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए तीन प्रकार के दण्डों का निरूपण किया है, जैसेमनोदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड / इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए तीन प्रकार के दण्डों का निरूपण करेंगे। जैसे - मनोदण्ड, वचनदण्ड और कायदण्ड / पार्यो ! मैंने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए जैसे चार कषायों का निरूपण किया है, यथा क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय / इसी प्रकार अर्हत् महापद्म भी श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए चार प्रकार के कषायों का निरूपण करेंगे। जैसे-क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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