SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 749
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवम स्थान ] [681 ___ उसका वर्ण काला, काली प्राभावाला, गम्भीर लोमहर्षक, भयंकर, त्रासजनक, और परम कृष्ण होगा / वह वहां ज्वलन्त मन, वचन और काय-तीनों को तोलने वाली-जिसमें तीनों योग तन्मय हो जाएंगे ऐसी प्रगाढ, कटुक, कर्कश, प्रचण्ड, दुःखकर दुर्ग के समान अलंध्य, ज्वलन्त, असह्य वेदना को वेदन करेगा। वह उस नरक से निकल कर आगामी उत्सपिणी में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, वैताढ्यगिरि के पादमूल में 'पुण्ड्र' जनपद के शतद्वार नगर में सन्मति कुलकर की भद्रा नामक भार्या की कुक्षि में पुरुष रूप से उत्पन्न होगा। वह भद्रा भार्या परिपूर्ण नौ मास तथा साढ़े सात दिन-रात बीत जाने पर सुकुमार हाथ-पैर वाले, अहीन-परिपूर्ण, पंचेन्द्रिय शरीर वाले लक्षण, व्यंजन और गुणों से युक्त अवयव वाले, मान, उन्मान, प्रमाण आदि से सर्वांग सुन्दर शरीर के धारक, चन्द्र के समान सौम्य प्राकार, कान्त, प्रियदर्शन और सुरूप पुत्र को उत्पन्न करेगी। जिस रात में वह बालक जनेगी, उस रात में सारे शतद्वार नगर में भीतर और बाहर भार और कुम्भ प्रमाण वाले पद्म और रत्नों की वर्षा होगी। उस बालक के माता-पिता ग्यारह दिन व्यतीत हो जाने पर अशुचिकर्म के निवृत्त हो जाने पर, बारहवें दिन उसका यथार्थ गुणनिष्पन्न नाम संस्कार करेंगे। यतः हमारे इस बालक के उत्पन्न होने पर समस्त शतद्वार नगर के भीतर-बाहिर भार और कुम्भ प्रमाण वाले पद्म और रत्नों की वर्षा हुई है, अतः हमारे बालक का नाम महापद्म होना चाहिए / इस प्रकार विचार-विमर्श कर उस बालक के माता-पिता उसका नाम 'महापद्म' निर्धारित करेंगे। ___ तब महापद्म को कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ जानकर उसके माता-पिता उसे महान् राज्याभिषेक के द्वारा अभिषिक्त करेंगे। वह वहां महान् हिमवान्, महान् मलय, मन्दर, और महेन्द्र पर्वत के समान सर्वोच्च राज्यधर्म का पालन करता हुअा, यावत् राज्य-शासन करता हुअा विचरेगा। तब उस महापद्म राजा को अन्य किसी समय महधिक, महाद्य ति-सम्पन्न, महानुभाग, महायशस्वी, महाबलो, महान् सौख्य वाले पूर्णभद्र और माणिभद्र नाम के धारक दो देव सैनिक कर्मसेना संबंधी कार्य करेंगे। तव उस शतद्वार नगर में अनेक राजा, ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह आदि एक दूसरे को इस प्रकार सम्बोधित करेंगे और इस प्रकार से कहेंगे-देवानुप्रियो ! महधिक, महाद्य तिसम्पन्न, महानुभाग, महायशस्वी, महाबली, और महान् सौख्य वाले पूर्णभद्र और माणिभद्र नामक दो देव यतः राजा महापद्म का सैनिककर्म कर रहे हैं, अतः हमारे महापद्म राजा का दूसरा नाम 'देवसेन' होना चाहिए। तब से उस महापद्म राजा का दूसरा नाम 'देवसेन' होगा। तब उस देवसेन राजा के अन्य किसी समय निर्मल शंखतल के समान श्वेत, चार दांत वाला हस्ति रत्न उत्पन्न होना / तब वह देवसेन राजा निर्मल शंखतल के समान श्वेत चार दांत वाले हस्तिरत्न पर आरूढ होकर शतद्वार नगर के बीचोंबीच होते हुए बार-बार जायगा और आयगा / तब उस शतद्वार नगर के अनेक राजा, ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह आदि परस्पर एक दूसरे को सम्बोधित करेंगे और इस प्रकार से कहेंगे-देवान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy