________________ 676 ] [स्थानाङ्गसूत्र ५४–एवं चेव जाव सलिलावतिम्मि दोहवेयडढे / इसी प्रकार सुपक्ष्म, महापक्ष्म, पक्ष्मकावती, शंख, नलिन, कुमुद और सलिलावती में विद्यमान दीर्घ वैताढ्य के ऊपर नौ-नौ कूट जानना चाहिए (54) / ५५---एवं वप्पे दोहवेयड्ढे। इसी प्रकार वप्र विजय में विद्यमान दीर्घ वैताढ्य के ऊपर नौ कूट कहे गये हैं (55) / ५६–एवं जाव गंधिलावतिम्मि दोहवेयड्ढे णव कडा पण्णता, तं जहा सिद्ध गंधिल खंडग, माणी वेयड्ढ पुण्ण तिमिसगुहा / गंधिलावति वेसमणे, कडाणं होंति णामाई // 1 // एवं-सव्वेसु दोहवेयड्ढेसु दो कूडा सरिसणामगा, सेसा ते चेव / इसी प्रकार सुवप्र, महावप्र, वप्रकावती, वल्गु, सुवल्गु, गन्धिल और गन्धिलावती में विद्यमान दीर्घ वैताढ्य के ऊपर नौ-नौ कूट कहे गये हैं। जैसे 1. सिद्धायतन कट ' 2. गन्धिलावती कूट, 3. खण्डप्रपातगुफा कूट, 4. माणिभद्र कूट, 5. वैताढ्य कूट, 6. पूर्णभद्र कूट, 7. तमिस्रगुफा कूट, 8. गन्धिलावती कूट 6. वैश्रमण कूट (56) / इसी प्रकार सभी दीर्घवैताढ्यों के ऊपर दो दो (दूसरा और आठवां) कूट एक ही नाम के (उसी विजय के नाम के) हैं और शेष सात कूट वे ही हैं / ५७–जंबुद्दीवे दीवे मंद रस्स पव्वयस्स उत्तरे णं णेलवंते वासहरपन्वते णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा सिट्ठ लवंते विदेहे, सीता कित्ती य णारिकता य / अवर विदेहे रम्मगकूटे, उवदंसणे चेव // 1 // जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के ऊपर उत्तर में नीलवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर नौ कूट कहे गये हैं / जैसे-- 1. सिद्धायतन कूट, 2. नीलवान् कूट, 3. पूर्वविदेह कूट, 4. सीता कूट, 5. कोत्ति कूट 6. नारिकान्ता कूट, 7. अपर विदेह कूट, 8. रम्यक कूट, 6. उपदर्शनकूट (57) / / ५८-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं एरवते दीहवेतड्ढे णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा सिद्ध रवए खंडग, माणी वेयड्ढ पुण्ण तिमिसगुहा / एरवते वेसमणे, एरवते कूडणामाई // 1 // जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में ऐरवत क्षेत्र के दीर्घवताढ्य के ऊपर नौ कूट कहे गये हैं / जैसे 1. सिद्धायतन कूट, 2. ऐरवत कूट, 3. खण्डकप्रपातगुफा कूट, 4. माणिभद्र कूट, 5. वैताढ्य कूट 6. पूर्णभद्र कूट, 7. तमिस्रगुफा कूट 8. ऐरवत कूट 6. वैश्रमण कुट (58) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org