________________ सप्तम स्थान ] [ 617 _ संघ से अलग होकर वह समुच्छेदवाद का प्रचार करने लगा। उसके अनुयायी एकान्त समुच्छेद का निरूपण करते हैं / 5. ह्रक्रिय-निव-भ. महावीर के निर्वाण के 228 वर्ष बाद उल्लुकातीर नगर में द्विक्रियावाद की उत्पत्ति हुई। इसके प्रवर्तक गंग थे। __ प्राचीन काल में उल्लुका नदी के एक किनारे एक खेड़ा था और दूसरे किनारे उल्लुकातीर नाम का नगर था / वहाँ प्रा. महागिरि के शिष्य प्रा. धनगुप्त रहते थे। उनके शिष्य का नाम गंग था। वे भी प्राचार्य थे। एक बार वे शरद् ऋतु में अपने प्राचार्य की वन्दना के लिए निकले / मार्ग में उल्लुका नदी थी। वे नदी में उतरे / उनका शिर गंजा था / ऊपर सूरज तप रहा था और नीचे पानी की ठंडक थी। नदी पार करते समय उन्हें शिर पर सूर्य की गर्मी और पैरों में नदी की ठंडक का अनुभव हो रहा था। वे सोचने लगे---'पागम में ऐसा कहा है कि एक समय में एक ही क्रिया का वेदन होता है, दो का नहीं। किन्तु मुझे स्पष्ट रूप से एक साथ दो क्रियाओं का वेदन हो रहा है।' वे अपने प्राचार्य के पास पहुंचे और अपना अनुभव उन्हें सुनाया। गुरु ने कहा-'वत्स ! वस्तुतः एक समय में एक ही क्रिया का वेदन होता है, दो का नहीं / समय और मन का क्रम बहुत सूक्ष्म है, अतः हमें उनके क्रम का पता नहीं लगता।' गुरु के समझाने पर भी वे नहीं समझे, तब उन्होंने गंग को संघ से बाहर कर दिया / संघ से अलग होकर वे द्विक्रियावाद का प्रचार करने लगे। उनके अनुयायी एक ही क्षण में एक ही साथ दो क्रियाओं का वेदन मानते हैं / 6. त्रैराशिक- निव-भ० महावीर के निर्वाण के 544 वर्ष बाद अन्तरंजिका नगरी में त्रैराशिक मत का प्रवर्तन हुआ। इसके प्रवर्तक रोहगुप्त (षडुलूक) थे। अतिरंजिका नगरी में एक वार प्रा. श्रीगुप्त ठहरे हुए थे। उनके संसार-पक्ष का भानेज उनका शिष्य था / एक वार वह दूसरे गांव से प्राचार्य की वन्दना को प्रारहा था। मार्ग में उसे एक पोट्टशाल नाम का परिव्राजक मिला, जो हर एक को अपने साथ शास्त्रार्थ करने की चुनौती दे रहा था। रोहगुप्त ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली और पाकर प्राचार्य को सारी बात कही। प्राचार्य ने कहा—'वत्स ! तूने ठीक नहीं किया। वह परिवाजक सात विद्याओं में पारंगत है, अतः तुझसे बलवान् है / ' रोहगुप्त आचार्य की बात सुन कर अवाक रह गया। कुछ देर बाद बोला-गुरुदेव ! अब क्या किया जाय ! आचार्य ने कहा-वत्स ! अब डर मत ! मैं तुझे उसकी प्रतिपक्षी सात विद्याएं सिखा देता हूं। तू यथासमय उनका प्रयोग करना / प्राचार्य ने उसे प्रतिपक्षी सात विद्याएं इस प्रकार सिखाई पोदृशाल की विद्याएं प्रतिपक्षी विद्याएं 1. वृश्चिकविद्या = मायूरीविद्या 2. सर्पविद्या =नाकुलीविद्या। 3. मूषकविद्या =विडालीविद्या 4. मृगीविद्या = व्याघ्रीविद्या 5. वराहीविद्या -सिंहीविद्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org