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________________ सप्तम स्थान ] [ 561 धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में सात वर्षधर पर्वत कहे गये हैं। जैसे 1. क्षुद्रहिमवान्, 2. महाहिमवान्, 3. निषध, 4. नीलवान्, 5. रुक्मी 6. शिखरी, 7. मन्दर / (55) ५६-धायइसंडदीवपुर थिमद्धणं सत्त महाणदीनो पुरत्याभिमुहीमो कालोयसमुदं समति, तं जहा---गंगा, (रोहिता, हरी, सीता, परकता, सुवण्णकूला), रत्ता। धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में सात महानदियां पूर्वाभिमुख होती हुई कालोदसमुद्र में मिलती हैं / जैसे-- 1. गंगा, 2. रोहिता, 3. हरित्, 4. सीता, 5. नरकान्ता, 6. सुवर्णकूला 7. रक्ता / (56) ५७-घायइसंडदीवपुरथिमद्धणं सत्त महाणदीनो पच्चत्थाभिमुहीमो लवणसमुदं समर्पति, तं जहा--सिंधू, (रोहितंसा, हरिकता, सीतोदा, गारिकता, रुप्पकूला), रत्तावती। धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में सात महानदियां पश्चिमाभिमुख होती हुई लवणसमुद्र में मिलती हैं / जैसे 1. सिन्धु, 2. रोहितांशा, 3. हरिकान्ता, 4. सीतोदा, 5. नारीकान्ता, 6. रूप्यकूला 7. रक्तवती / (57) ५८-धायइसंडदीवे पच्चथिमद्ध णं सत्त वासा एवं चेव, णवरं--पुरत्थाभिमुहीनो लवणसमुई समप्पंति, पच्चस्थाभिमुहीनो कालोदं / सेसं त चेव / धातकीषण्ड द्वीप के पश्चिमा में सात वर्ष, सात वर्षधर पर्वत और सात महानदियां इसी प्रकार-धातकीखण्ड के पूर्वार्ध के समान ही हैं। अन्तर केवल इतना है कि पूर्वाभिमुखी नदियां लवण समुद्र में और पश्चिमाभिमुखी नदियां कालोद समुद्र में मिलती हैं / शेष सर्व वर्णन वही है (58) / __५६-पुक्खरवरदीवडपुरस्थिमद्ध णं सत्त वासा तहेव, नवरं–पुरस्थाभिमुहीमो पुक्खरोदं समुदं समर्पति, पच्चस्थाभिमुहीनो कालोदं समुई समस्येति / सेसं त चेव। पुष्करवर-द्वीप के पूर्वार्ध में सात वर्ष, सात वर्षधर पर्वत, और सात महानदियां तथैव हैं, अर्थात् धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध के समान ही हैं। अन्तर केबल इतना है कि पूर्वाभिमुखी नदियां पुष्करोदसमुद्र में और पश्चिमाभिमुखी नदियां कालोद समुद्र में मिलती हैं (56) / ६०–एवं पच्चत्थिमवि नवरं--पुरस्थाभिमुहीमो कालोदं समुद्रं समति, पच्चत्थाभिमुहीनो पुक्खरोदं समप्पैति / सवत्थ वासा वासहरपवता गदीनो य भाणितब्वाणि / इसी प्रकार अर्धपुष्करवर द्वीप के पश्चिमार्ध में सात वर्ष, सात वर्षधर पर्वत और सात महानदियां धातकीषण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध के समान ही हैं। अन्तर केवल इतना है कि पूर्वाभिमुखी नदियां कालोद समुद्र में और पश्चिमाभिमुखी नदियां पुष्करोद समुद्र में जा कर मिलती हैं / (60) कुलकर-सूत्र ६१-जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तीताए उस्सप्पिणीए सत्त कुलगरा हुत्था, तजहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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