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________________ सप्तम स्थान ] [ 586 (12) उत्तर-श्यामा स्त्री मधुर गीत गाती है / काली स्त्री खर (परुष) और रूक्ष गाती है / केशी स्त्री चतुर गीत गाती है। काणी स्त्री विलम्ब गीत गाती है। अन्धी स्त्री द्रत गीत गाती है और पिंगला स्त्री विस्वर गीत गाती है। 3) सप्तस्वर सीभर की व्याख्या इस प्रकार है 1. तंत्रीसम-तंत्री-स्वरों के साथ-साथ गाया जाने वाला गीत / 2. तालसम-ताल-वादन के साथ-साथ गाया जाने वाला गीत / 3. पादसम-स्वर के अनुकूल निर्मित गेयपद के अनुसार गाया जाने वाला गीत / 4. लयसम-वीणा आदि को आहत करने पर जो लय उत्पन्न होती है, उसके अनुसार गाया जाने वाला गीत / 5. ग्रहसम-वीणा आदि के द्वारा जो स्वर पकड़े जाते हैं, उसी के अनुसार गाया जाने वाला गीत। 6. निःश्वसितोच्छ्वसित सम-सांस लेने और छोड़ने के क्रमानुसार गाया जाने वाला गीत / 7. संचारसम-सितार आदि के साथ गाया जाने वाला गीत / इस प्रकार गीत स्वर तंत्री आदि के साथ सम्बन्धित होकर सात प्रकार का हो जाता है। (14) उपसंहार-इस प्रकार सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मूर्च्छनाएं होती हैं। प्रत्येक स्वर सात तानों से गाया जाता है, इसलिए उनके (747=) 46 भेद हो जाते हैं। इस प्रकार स्वर-मण्डल का वर्णन समाप्त हुआ। (48) कायक्लेश-सूत्र ४६-सत्तविधे कायकिलेसे पण्णत्ते, त जहा- ठाणातिए, उक्कुड्यासणिए, पडिमठाई, वीरासणिए, णेसज्जिए, दंडायतिए, लगंडसाई / कायक्लेश तप सात प्रकार का कहा गया है / जैसे 1. स्थानायतिक-खड़े होकर कायोत्सर्ग में स्थिर होना / 2. उत्कुटुकासन दोनों पैरों को भूमि पर टिकाकर उकडू बैठना / 3. प्रतिमास्थायो -भिक्षु प्रतिमा की विभिन्न मुद्राओं में स्थित रहना। 4. वीरासनिक-सिंहासन पर बैठने के समान दोनों घुटनों पर हाथ रख कर अवस्थित होना अथवा सिंहासन पर बैठकर उसे हटा देने पर जो प्रासन रहता है वह वीरासन है। इस प्रासन वाला वीरासनिक है। 5. नैषधिक-पालथी मार कर स्थिर हो स्वाध्याय करने की मुद्रा में बैठना / 6. दण्डायतिक-डण्डे के समान सीधे चित्त लेट कर दोनों हाथों और पैरों को सटा कर ___अवस्थित रहना। 7. लगंडशायी-भूमि पर सीधे लेट कर लकुट के समान एड़ियों और शिर को भूमि से लगा कर पीठ आदि मध्यवर्ती भाग को ऊपर उठाये रखना। (48) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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