________________ 588] [ स्थानाङ्गसूत्र 7. समगुण-ताल, वीणा आदि का अनुसरण करते हुए गाना / 8. सुकुमार गुण---ललित, कोमल लय से गाना / गीत के ये पाठ गुण और भी होते हैं१. उरोविशुद्ध--जो स्वर उरःस्थल में विशाल होता है। 2. कण्ठविशुद्ध-जो स्वर कण्ठ में नहीं फटता। 3. शिरोविशुद्ध-जो स्वर शिर से उत्पन्न होकर भी नासिका से मिश्रित नहीं होता। 4. मृदु-जो राग कोमल स्वर से गाया जाता है। 5. रिभित-घोलना-बहुल आलाप के कारण खेल सा करता हुआ स्वर / 6. पद-बद्ध-गेय पदों से निबद्ध रचना।। 7. समताल पदोत्क्षेप--जिसमें ताल, झांझ आदि का शब्द और नर्तक का पाद निक्षेप, ये सब सम हों, अर्थात् एक दूसरे से मिलते हों। 8. सप्तस्वरसीभर-जिसमें सातों स्वर तंत्री आदि के सम हों। गेय पदों के आठ गुण इस प्रकार हैं१. निर्दोष बत्तीस दोष-रहित होना। 2. सारवन्त–सारभूत अर्थ से युक्त होना। 3. हेतुयुक्त-अर्थ-साधक हेतु से संयुक्त होना / 4. अलंकृत-काव्य-गत अलंकारों से युक्त होना / 5. उपनीत–उपसंहार से युक्त होना। 6. सोपचार-कोमल, अविरुद्ध और अलज्जनीय अर्थ का प्रतिपादन करना, अथवा व्यंग्य या हंसी से संयुक्त होना / 7. मित–अल्प पद और अल्प अक्षर वाला होना। 8. मधुर-शब्द, अर्थ और प्रतिपादन की अपेक्षा प्रिय होना। वृत्त-छन्द तीन प्रकार के होते हैं१. सम-जिसमें चरण और अक्षर सम हों, अर्थात् चार चरण हों और उनमें गुरु लघु अक्षर भी समान हों अथवा जिसके चारों चरण सरीखे हों। 2. अर्धसम-जिसमें चरण या अक्षरों में से कोई एक सम हो, या विषम चरण होने पर भी उनमें गुरु-लघु अक्षर समान हों। अथवा जिसके प्रथम और तृतीय चरण तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण समान हों। 3. सर्वविषम-जिसमें चरण और अक्षर सब विषम हों। अथवा जिसके चारों चरण विषम हों। इनके अतिरिक्त चौथा प्रकार नहीं पाया जाता। (10) भणिति-गीत की भाषा दो प्रकार की कही गई है-संस्कृत और प्राकृत / ये दोनों प्रशस्त और ऋषि-भाषित हैं और स्वर-मण्डल में गाई जाती हैं। (11) प्रश्न-मधुर गीत कौन गाती है ? परुष और रूक्ष कौन गाती है ? चतुर गीत कौन गाती है ? विलम्ब गीत कौन गाती है ? द्रुत (शीघ्र) गीत कौन गाती है ? तथा विस्वर गीत कौन गाती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org