________________ 582] [ स्थानाङ्गसूत्र गौतम गोत्रीय सात प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. गौतम, 2. गार्ग्य, 3. भारद्वाज, 4. आङ्गिरस, 5. शर्कराभ, 6. भास्कराभ 7. उदत्ताभ (32) / ३३–जे वच्छा ते सत्तविधा पण्णता, त जहा ते वच्छा, ते अग्गेया, ते मित्तया, ते सामलिणो, ते सेलयया, ते अट्टिसेणा, ते वीयकण्हा / जो वत्स हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. वत्स, 2. आग्नेय, 3. मैत्रेय, 4. शाल्मली, 5. शैलक, 6. अस्थिषेण, 7. वीतकृष्ण (33) / ३४---जे कोच्छा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा. ते कोंच्छा, ते मोग्गलायणा, ते पिंगलायणा, ते कोडीणो, [ष्णा ? ], ते मंडलिगो, ते हारिता, ते सोमया / जो कौत्स, हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कौत्स, 2. मौद्गलायन, 3. पिङ्गलायन, 4. कौडिन्य, 5. मण्डली, 6. हारित, 7. सौम्य (34) / ३५-जे कोसिसा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा--ते कोसिना, ते कच्चायणा, ते सालंकायणा, ते गोलिकायणा, से पक्खिकायणा, ते अग्गिच्चा, ते लोहिच्चा। जो कौशिक हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कौशिक, 2. कात्यायन, 3. सालंकायन, 4. गोलिकायन, 4. पाक्षिकायन, 6. आग्नेय 7. लौहित्य (35) / ३६-जे मंडवा ते सत्तविधा पण्णता, तं जहा-ते मंडवा, ते आरिट्ठा, ते संमुता, ते तेला, ते एलावच्चा, ते कंडिल्ला, ते खारायणा। जो माण्डव हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं / जैसे---- 1. माण्डव, 2. अरिष्ट, 3. सम्मुत, 4. तैल, 5. ऐलापत्य, 6. काण्डिल्य, 7. क्षारायण(३६)। 37- जे वासिट्टा ते सत्तविधा पण्णत्ता, तं जहा ते वासिट्टा, ते उंजायणा, ते जारुकण्हा, ते वग्घावच्चा, ते कोंडिण्णा, ते सण्णी, ते पारासरा। जो बाशिष्ठ हैं, वे सात प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. वाशिष्ठ, 2. उञ्जायण, 3. जरत्कृष्ण, 4. व्याघ्रापत्य, 5. कौण्डिन्य, 6. संजी, 7. पाराशर (37) / नय-सूत्र ३८-सत्त मूलणया पग्णत्ता, तं जहा–णेगमे, संगहे, ववहारे, उज्जुसुते, सद्दे. समभिरूलें, एवंभूते। मूल नय सात कहे गये हैं / जैसे१. नैगम-भेद और अभेद को ग्रहण करने वाला नय / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org