________________ 580 ] [ स्थानाङ्गसूत्र विवेचन-कहीं कहीं वृत्त का अर्थ नारंगी के समान गोल और परिमण्डल का अर्थ वलय या चूड़ी के समान गोल आकार कहा गया है। भयस्थान-सूत्र २७–सत्त भयाणा पण्णत्ता, तं जहा—इहलोगभए, परलोगभए, प्रादाणभए, प्रकम्हाभए, वेयणभए, मरणभए, असिलोगभए / भय के स्थान सात कहे गये हैं। जैसे१. इहलोक-भय---इस लोक में मनुष्य, तिथंच आदि से होने वाला भय / 2. परलोक-भय-परभव कैसा मिलेगा, इत्यादि परलोक सम्बन्धी भय / 3. आदान-भय-सम्पत्ति आदि के अपहरण का भय / 4. अकस्माद-भय---अचानक या अकारण होने वाला भय / 5. वेदना-भय-रोग-पीड़ा आदि का भय / 6. मरण-भय-मरने का भय / 7. अश्लोक-भय-अपकीत्ति का भय (27) / विवेचन-संस्कृतटीकाकार ने सजातीय व मनुष्यादि से होने वाले भय को इहलोक भय और विजातीय तिर्यंच आदि से होने वाले भय को परलोक भय कहा है। दिगम्बर परम्परा में अश्लोक भय के स्थान पर अगुप्ति या अत्राणभय कहा है इसका अर्थ है-अरक्षा का भय / छद्मस्थ-सूत्र २८-सत्तहि ठाणेहि छ उमत्थं जाणेज्जा, तं जहा-पाणे अइवाएत्ता भवति / मुसं वइत्ता भवति / अदिण्णं आदित्ता भवति / सद्दफरिसरसरूवगंधे प्रासादेत्ता भवति / पूयासक्कारं अणुवहेत्ता भवति / इमं सावज्जति पण्णवेत्ता पडिसेवेत्ता भवति / णो जहावादी तहाकारी यावि भवति / सात स्थानों से छद्मस्थ जाना जाता है / जैसे१. जो प्राणियों का घात करता है। 2. जो मृषा (असत्य) बोलता है। 3. जो अदत्त (विना दी) वस्तु को ग्रहण करता है। 4. जो शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध का आस्वाद लेता है। 5. जो अपने पूजा और सत्कार का अनुमोदन करता है। 6. जो 'यह सावध (सदोष) है', ऐसा कहकर भी उसका प्रतिसेवन करता है। 7. जो जैसा कहता है, वैसा नहीं करता (28) / केवलि-सूत्र ___२६-सहि ठाणेहि केवली जाणेज्जा, तं जहा–णो पाणे अइवाइत्ता भवति / (णो मुस वइत्ता भवति / णो प्रदिण्णं आदित्ता भवति / णो सद्दफरिसरसरूवगंधे प्रासादेत्ता भवति / णो पूयासक्करं अणुवहेत्ता भवति / इमं सावज्जति पण्णवेत्ता णो पडिसेवेत्ता भवति / ) जहावादी तहाकारी यावि भवति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org