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________________ 576 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 6. प्राचार्य और उपाध्याय गण के लिए अनुपलब्ध उपकरणों को सम्यक् प्रकार से उपलब्ध न करें। 7. प्राचार्य और उपाध्याय गरण में पूर्व-उपलब्ध उपकरणों का सम्यक् प्रकार से संरक्षण एवं संगोपन न करें (7) / प्रतिमा-सूत्र ८-सत्त पिंडेसणानो पण्णत्तानो। पिण्ड-एषणाएँ सात कही गई हैं / विवेचन-आहार के अन्वेषण को पिण्ड-एषणा कहते हैं / वे सात प्रकार की होती हैं / उनका विवरण संस्कृतटीका के अनुसार इस प्रकार है 1. संसृष्ट-पिण्ड-एषणा-देय वस्तु से लिप्त हाथ से, या कड़छी आदि से आहार लेना / 2. असंसृष्ट-पिण्ड-एषणा देय वस्तु से अलिप्त हाथ से, या कड़छी आदि से आहार लेना / 3. उद्धत-पिण्ड-एषणा–पकाने के पात्र से निकाल कर परोसने के लिए रखे पात्र से आहार लेना। 4. अल्पलेपिक-पिण्ड-एषणा-रूक्ष आहार लेना / 5. अवगृहीत-पिण्ड-एषणा-खाने के लिए थाली में परोसा हुआ आहार लेना / 6. प्रगृहीत-पिण्ड-एषणा–परोसने के लिए कड़छी आदि से निकाला हुअा आहार लेना। 7. उज्झितधर्मा-पिण्ड-एषणा-घरवालों के भोजन करने के बाद बचा हुआ एवं परित्याग ___ करने के योग्य आहार लेना (8) / -सत्त पाणेसणाप्रो पण्णत्ताओ। पान-एषणाएं सात कही गई हैं। विवेचन—पोने के योग्य जल आदि की गवेषणा को पान-एषणा कहते हैं। उसके भी पिण्डएषणा के समान सात भेद इस प्रकार से जानना चाहिए.-- 1. संसृष्ट-पान-एषणा, 2. असंसृष्ट-पान-एषणा, 3. उद्धृत-पान-एषणा, 4, अल्पलेपिक पान-एषणा, 5. अवगहीत-पान-एषणा, 6. प्रगहीत-पान-एषणा, और उज्झितधर्मा-पान-एषणा / __यहां इतना विशेष जानना चाहिए कि अल्पलेपिक-पान-एषणा का अर्थ कांजी, प्रोसामण, उष्णजल, चावल-धोवन आदि से है और इक्षुरस, द्राक्षारस, आदि लेपकृत-पान-एषणा है (6) / १०–सत्त उग्गहपडिमानो पण्णतायो। अवग्रह-प्रतिमाएं सात कही गई हैं। विवेचन---वसतिका, उपाश्रय या स्थान-प्राप्ति संबंधी प्रतिज्ञा या संकल्प करने को अवग्रहप्रतिमा कहते हैं। उसके सातों प्रकारों का विवरण इस प्रकार है 1. मैं अमुक प्रकार के स्थान में रहूंगा, दूसरे स्थान में नहीं। 2. मैं अन्य साधुओं के लिए स्थान की याचना करूंगा, तथा दूसरों के द्वारा याचित स्थान में रहूंगा / यह अवग्रहप्रतिमा गच्छान्तर्गत साधुओं के लिए होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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