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________________ षष्ठ स्थान ] [ 565 4. अवगाहनानामनिधत्तायु-नारकायुष्क के बन्ध के साथ वैक्रियशरीर नामकर्म का नियम से बंधना। 5. प्रदेशनाम निधत्तायु-नारकायुष्क के बंध के साथ प्रदेशों का नियम से बंधना / 6. अनुभागनामनिधत्तायु-नारकयुष्क के बंध के साथ अनुभाग का नियम से बंधना ११८–एवं जाव वेमाणियाणं / इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डकों के जीवों में आयुष्य कर्म का बन्ध छह प्रकार का जानना चाहिए 118 / परभविक आयुर्वन्ध सूत्र ११६-णेरइया णियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति / भुज्यमान प्रायु के छह मास के अवशिष्ट रहने पर नारकी जीव नियम से परभव की आयु का बन्ध करते हैं (116) / १२०–एवं असुरकुमारावि जाव थणियकुमारा। इसी प्रकार असुर कुमार भी, तथा स्तनितकुमार तक के सभी भवन-पति देव भी छह मास आयु के अवशिष्ट रहने पर नियम से परभव की आयु का बन्ध करते हैं (120) / 121 –प्रसंखेज्जवासाउया सण्णिचिदियतिरिक्खजोणिया णियम छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेति / छह मास प्रायु के अवशिष्ट रहने पर असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञि-पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव नियम से परभव की आयु का बन्ध करते हैं (121) / १२२-प्रसंखेज्जवासाउया सण्णिमणुस्सा णियमं छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति / छह मास आयु के अवशिष्ट रहने पर असंख्येय वर्षायुष्क संज्ञि-मनुष्य नियम से परभव की आयु का बन्ध करते हैं ' (122) / १२३-वाणमंतरा जोतिसवासिया वेमाणिया जहा णेरइया / वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव नारक जीवों के समान छह मास आयु के अवशिष्ट रहने पर परभव की आयु का नियम से बन्ध करते हैं (123) / भाव-सूत्र १२४-छविधे भावे पण्णत्ते, तं जहा-प्रोदइए, उवसमिए, खइए, खोवसमिए, पारिणामिए, सण्णिवातिए। 1 दिगम्बर शास्त्रों के अनुसार असंख्यात वर्ष की प्रायू वाले मनुष्य और तिर्यंच वत्तं मान भव की आयू के नो मास शेष रहने पर परभव की आयु का बन्ध करते हैं। (देखो-गो० जीवकाण्ड माथा 517 टीका) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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