________________ षष्ठ स्थान ] [553 ७४-चंदस्स णं जोतिसिदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता पत्तंभागा प्रवड्ढक्खत्ता पण्णरस. मुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा-सयभिसया, भरणी, भद्दा, अस्सेसा, साती, जेट्टा / ज्योतिष्कराज, ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के अपार्धक्षेत्री नक्तभागी (रात्रिभोगी) पन्द्रह मुहूर्त तक भोग करने वाले छह नक्षत्र कहे गये हैं। जैसे 1. शतभिषक, 2. भरणी, 3. भद्रा, 4. आश्लेषा, 5. स्वाति, 6. ज्येष्ठा (74) / ७५-चंदस्स णं जोइसिदस्स जोतिसरण्णो छ णक्खत्ता उभयभागा दिवड्ढखेत्ता पणयालीसमुहुत्ता पण्णत्ता, तं जहा-रोहिणी, पुणव्वसू, उत्तराफग्गुणो, विसाहा, उत्तरासाढा, उत्तराभद्दवया। ज्योतिष्कराज, ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र के उभययोगी द्वयर्धयोगी और पैतालीस मुहर्त तक भोग करने वाले छह नक्षत्र कहे गये हैं / जैसे 1. रोहिणी, 2. पुनर्वसु, 3. उत्तरफाल्गुनी, 4. विशाखा, 5. उत्तराषाढ़ा, 6. उत्तराभाद्रपद / (75) / इतिहास-सूत्र ७६-अभिचंदे णं कुलकरे छ धणुसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं हुत्था / अभिचन्द्र कुलकर छह सौ धनुष ऊँचे शरीर वाले थे (76) / ७७-~भरहे णं राया चाउरंतचक्कवट्टो छ पुन्बसतसहस्साइं महाराया हुत्था। चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा छह लाख पूर्वो तक महाराज पद पर रहे (77) / ७८--पासस्स णं अरहनो पुरिसादाणियस्स छ सता वादीणं सदेवमणुयासुराए परिसाए अपराजियाणं संपया होत्था। पुरुषादानीय (पुरुषप्रिय) अर्हत् पार्श्व के देवों, मनुष्यों और असुरों को सभा में छह सौ अपराजित वादी मुनियों की सम्पदा थी (78) / ७६–वासुपुज्जे णं अरहा छहिं पुरिससहि सद्धि मुडे (भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं) पन्वइए। वासुपूज्य अर्हन् छह सौ पुरुषों के साथ मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रव्रजित हुए थे (76) / ८०-चंदप्पभे णं अरहा छम्मासे छउमत्थे हत्था / चन्द्रप्रभ अर्हन् छह मास तक छमस्थ रहे (80) / संयम-असंयम-सूत्र 81 तेइंदिया णं जीवा असमारभमाणस्स छव्विहे संजमे कज्जति, तं जहा–घाणामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति / घाणामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवति / जिब्भामातो सोक्खातो प्रववरोवेत्ता मवति, (जिब्भामएणं दुक्खणं असंजोएत्ता भवति / फासामातो सोक्खातो अववरोवेत्ता भवति / फासामएणं दुक्खणं असंजोएत्ता भवति)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org