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________________ षष्ठ स्थान] [ 536 4. कर्मभूमि में उत्पन्न होने वाले गर्भज मनुष्य, 5. अकर्मभूमि में उत्पन्न होने वाले गर्भज मनुष्य, 6. अन्तर्वीप में उत्पन्न होने वाले गर्भज मनुष्य (20) / २१–छटिवहा इड्ढिमंता मणुस्सा पण्णत्ता, त जहा-अरहंता, चक्कवट्टी, बलदेवा, वासुदेवा, चारणा, विज्जाहरा। (विशिष्ट) ऋद्धि वाले मनुष्य छह प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१ अर्हन्त, 2. चक्रवर्ती, 3. बलदेव, 4. वासुदेव, 5. चारण, 6. विद्याधर (21) / विवेचन-अर्हन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, और वासुदेव की ऋद्धि तो पूर्वभवोपाजित पुण्य के प्रभाव से होती है। वैताढ्यनिवासी विद्यधरों की ऋद्धि कुलक्रमागत भी होती है और इस भव में भी विद्याओं की साधना से प्राप्त होती है। किन्तु चारणऋद्धि महान् तपस्वी साधुओं की कठिन तपस्या से प्राप्त लब्धिजनित होती है। श्री अभयदेव सूरि ने 'चारण' के अर्थ में 'जंघाचारण और विद्याचारण' केवल इन दो नामों का उल्लेख किया है। जिन्हें तप के प्रभाव से भूमि का स्पर्श किये विना ही अधर गमनागमन को लब्धि प्राप्त होती है, वे जंघाचारण कहलाते हैं और विद्या की साधना से जिन्हें आकाश में गमनागमन को शक्ति प्राप्त होती है, वे विद्याचारण कहलाते हैं / २२-छबिहा प्रणिढिमता मणुस्सा पण्णत्ता, तं जहा---हेमवतगा, हेरण्णवतगा, हरिवासगा, रम्मगवासगा, कुरुवासिणो, अंतरदीवगा। तिलोयपण्णती प्रादि में ऋद्धिप्राप्त पार्यों के आठ भेद बताये गये हैं-१. बुद्धि ऋद्धि, 2. क्रियाऋद्धि, 3. विक्रियाऋद्धि, 4. तपःऋद्धि, 5. बलऋद्धि, 6. औषधऋद्धि, 7. रसऋद्धि और 8. क्षेत्रऋद्धि। इनमें बुद्धिऋद्धि के केवलज्ञान आदि 18 भेद हैं। क्रियाऋद्धि के दो भेद हैंचारणऋद्धि और प्राकाशगामी ऋद्धि / चारणऋद्धि के भी अनेक भेद बताये गये हैं। यथा 1. जंघाचारण-भूमि से चार अंगुल ऊपर गमन करने वाले / 2. अग्निशिखाचारण-अग्नि की शिखा के ऊपर गमन करने वाले। 3. श्रेणिचारण-पर्वतश्रोणि ग्रादि का स्पर्श किये बिना ऊपर गमन करने वाले। 4. फल-चारण-वृक्षों के फलों को स्पर्श किये विना ऊपर गमन करने वाले / 5. पुष्पचारण-वृक्षों के पुष्पों को स्पर्श किये विना ऊपर चलने वाले। 6. तन्तुचारण-मकड़ी के तन्तुओं को स्पर्श किये विना उनके ऊपर चलने वाले / 7. जलचारण-जल को स्पर्श किये विना उसके ऊपर चलने वाले। 8. अंकुरचारण-वनस्पति के अंकुरों का स्पर्श किये विना ऊपर चलने वाले / 6. वीजचारण---बीजों का स्पर्श किये विना उनके ऊपर चलने वाले / 10. धूमचारण---धूम का स्पर्श किये विना उसको गति के साथ चलने वाले / इसी प्रकार वायुचारण, नीहारचारण, जलदचारण आदि अनेक प्रकार के चारणऋद्धि वालों की भी सूचना की गई है। आकाशगामिऋद्धि-पर्यङ्कासन से बैठे हुए, या खङ्गासन से अवस्थित रहते हुए पाद-निक्षेप के विना ही विविध आसनों से आकाश में बिहार करने वालों को आकाशगामिऋद्धि वाला बताया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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