________________ 534] [स्थानाङ्गसूत्र छठे कारण से ज्ञात होता है कि कालगत आराधक को विजित करने के लिए साधु या साध्वियों को जाना पड़े तो मौनपूर्वक जाना चाहिए। ___ इस निर्हरणरूप अन्त्यकर्म का विस्तृत विवेचन बृहत्कल्पभाष्य और मूलाराधना से जानना चाहिए। छद्मस्य-केवली-सूत्र ४-छ ठाणाई छउमत्थे सवभावेणं ण जाणति ण पासति, तं जहा-धम्मत्थिकायं, अधम्मस्थिकायं, प्रायासं, जीवमसरीरपडिबद्ध, परमाणुयोग्गलं, सइं। एताणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे (केवली) सव्वभावेणं जाणति पासति, तं जहा-धम्मस्थिकायं (अधम्मस्थिकायं प्रायासं, जोवमसरीरपडिबद्ध, परमाणुपोग्गलं), सई / छद्मस्थ पुरुष छह स्थानों को सम्पूर्ण रूप से न जानता है और न देखता है / जैसे१. धर्मास्तिकाय, 2. अधर्मास्तिकाय, 3. आकाशास्तिकाय, 4. शरीर रहित जीव, 5. पुद्गल परमाणु, 6. शब्द / किन्तु जिनको विशिष्ट ज्ञान-दर्शन उत्पन्न हुआ है, उनके धारण करने वाले अर्हन्त, जिन केवली सम्पूर्ण रूप से जानते और देखते हैं / जैसे 1. धर्मास्तिकाय, 2. अधर्मास्तिकाय, 3. आकाशास्तिकाय, 4. शरीर-रहित जीव, 5. पुद्गल परमाणु, 6. शब्द (4) / असंभव-सूत्र 5- छहि ठाणेहिं सव्वजीवाणं णस्थि इड्डीति वा जुतीति वा जसेति वा बलेति वा वोरिएति वा पुरिसक्कार-परक्कमेति वा, तं जहा–१. जीवं वा अजीवं करणताए / 2. अजीवं वा जीवं करणताए। 3. एगसमए णं वा दो भासाप्रो भासित्तए। 4. सयं कडं वा कम्मं वेदेमि वा मा वा वेदेमि / 5. परमाणुपोग्गलं वा छिदित्तए वा भिदित्तए वा अगणिकाएणं वा समोदहित्तए / 6. बहिता वा लोगंता गमणताए। सभी जीवों में छह कार्य करने को न ऋद्धि है, न द्य ति है, न यश है, न बल है, न वीर्य है, न पुरस्कार है और न पराक्रम है। जैसे 1. जीव को अजीव करना / 2. अजीव को जीव करना / 3. एक समय में दो भाषा बोलना। 4. स्वयंकृत कर्म को वेदन करना या नहीं वेदन करना / 5. पुद्गल परमाणु का छेदन या भेदन करना, या अग्निकाय से जलाना / 3. लोकान्त से बाहर जाना (5) / जीव-सूत्र ६-छज्जीवणिकाया पण्णत्ता, तं जहा-पुढविकाइया, (आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया) तसकाइया। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International