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________________ पंचम स्थान-तृतीय उद्देश] [527 सौधर्म और ईशान कल्प के विमान पांच सौ योजन ऊंचे कहे गये हैं (226) / 227- बंभलोग-लंतएसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जसरीरगा उक्कोसेणं पंचरयणी उड्डे उच्चत्तेणं पण्णत्ता। ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प के देवों के भवधारणीय शरीर की उत्कृष्ट ऊंचाई पांच रत्नि (हाथ) कही गई है (227) / बंध-सूत्र २२८-रइया णं पंचवण्णे पंचरसे पोग्गले बंधेसु वा बंधति या बंधस्संति वा, तं जहाकिण्हे. (णोले, लोहिते, हालिद्दे), सुकिल्ले / तित्ते, (कडुए, कसाए, अंबिले), मधुरे। नारक जीवों ने पांच वर्ण और पांच रस वाले पुद्गलों को कर्मरूप से भूतकाल में बांधा है, वर्तमान में बांध रहे हैं और भविष्य में बांधेगे / जैसे 1. कृष्ण वर्णवाले, 2. नील वर्णवाले, 3. लोहित वर्णवाले, 4. हारिद्र वर्णवाले, और 5. शुक्लवर्ण वाले। तथा--१. तिक्त रसवाले, 2. कटु रसवाले, 3. कषाय रसवाले, 4. अम्ल रस बाले, और 5. मधुर रसवाले (228) / २२६–एवं जाव वेमाणिया / इसी प्रकार वैमानिकों तक के सभी दण्डकों के जीवों ने पांच वर्ण और पांच रस वाले पुद्गलों को कर्म रूप से भूतकाल में बांधा है, वर्तमान में बाँध रहे हैं और भविष्य में बांधेगे (226) / महानदी-सूत्र २३०–जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं गंगं महादि पंच महाणदीग्रो समति, तं जहा-जउणा, सरऊ, आवो, कोसी, मही। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण भाग में (भरत क्षेत्र में) पाँच महान दियाँ गंगा महानदी को समर्पित होती हैं, अर्थात् उसमें मिलती हैं, जैसे-१. यमुना, 2. सरयू, 3. प्रावी, 4. कोसी, 5. मही (230) / २३१-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं सिंधु महार्णाद पच महाणदोनो समति, तं जहा--सतद्, वितत्या, विभासा, एरावती, चंदभागा। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दरपर्वत के दक्षिण भाग में (भरत क्षेत्र में) पाँच महानदियाँ सिन्धु महानदी को समर्पित होती हैं (उसमें मिलती हैं)। जैसे 1. शतद् (सतलज) 2. वितस्ता (झेलम) 3. विपास (व्यास) 4. ऐरावती (रावी) 5. चन्द्रभागा (चिनाव) (231) / ___ २३२-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पन्चयस्स उत्तरे णं रत्तं महादि पंच महाणदीओ समप्पेति, तं जहा-किण्हा, महाकिण्हा, गीला, महाणीला, महातीरा। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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