________________ पंचम स्थान--तृतीय उद्देश ] [ 525 ज्ञान-सूत्र २१८-पंचविहे गाणे पण्णते, त जहा-ग्राभिणिबोहियाणाणे, सुयणाणे, ओहिणाणे, मणपज्जवणाण, केवलणाणे / म ज्ञान पांच प्रकार का कहा 1. आभिनिबोधिकज्ञान, 2. श्रु तज्ञान, 3. अवधिज्ञान, 4. मनःपर्यवज्ञान, 5. केवल ज्ञान (218) / २१६-पंचविहे णाणावरणिज्जे कम्मे पण्णत्ते, त जहा–प्राभिगिबोहियणाणावरणिज्जे, (सुयणाणावरणिज्जे, प्रोहिणाणावरणिज्जे, मण यज्जवणाणावरणिज्जे), केवलणाणावरणिज्जे / ज्ञानावरणीय कर्म पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे१. आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय, 2. ध तज्ञानावरणीय, 3. अवधिज्ञानावरणीय, 4. मन: पर्यवज्ञानावरणीय, 5. केवलज्ञानावरणीय (216) / २२०--पंचविहे सज्झाए पण्णते, त जहा वायणा, पुच्छणा, परियट्टणा, अणुप्पेहा, धम्मकहा। स्वाध्याय पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे-- 1. वाचना--पठन-पाठन करना / 2. पृच्छना-संदिग्ध विषय को पूछना / 3. परिवर्तना--- पठित विषय को फेरना / 4. अनुप्रक्षा-बार-वार-चिन्तन करना / 5. धर्मकथा-धर्म चर्चा करना (220) / प्रत्याख्यान-सूत्र ___२२१-पंचविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, त जहा-सद्दहणसुद्ध, विणयसुद्ध, अणुभासणासुद्ध, अणुपालणासुद्ध, भावसुद्ध / प्रत्याख्यान पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे---- 1. श्रद्धानशुद्ध-प्रत्याख्यान-श्रद्धापूर्वक निर्दोष त्याग-प्रतिज्ञा / 2. विनयशुद्ध-प्रत्याख्यान-विनयपूर्वक निर्दोष त्याग-प्रतिज्ञा। 3. अनुभाषणाशुद्ध-प्रत्याख्यान-गुरु के बोलने के अनुसार प्रत्याख्यान-पाठ बोलना। 4. अनुपालनाशुद्ध-प्रत्याख्यान-विकट स्थिति में भी प्रत्याख्यान का निर्दोष पालन करना। 5. भावशुद्ध-प्रत्याख्यान-रागद्वेष से रहित होकर शुद्ध भाव से प्रत्याख्यान का पालन करना (221) / प्रतिक्रमण-सूत्र २२२---पंचविहे पडिक्कमणे पण्णत्ते, तजहा---प्रासवदारपडिक्कमणे, मिच्छत्तपडिक्कमणे, कसायपडिक्कमणे, जोगपडिक्कमणे, भावपडिक्कमणे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org