________________ 500 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 1. नीलवत्द्रह 2. उत्तरकुरुद्रह, 3. चन्द्रद्रह, 4. ऐरावणद्रह, 5. माल्यवत्द्रह (155) / वक्षस्कारपर्वत-सूत्र १५६-सब्वेवि गं वक्खारपन्वया सीया-सोप्रोयानो महाणईयो मंदरं वा पव्वतं पंच जोयणसताई उड्ड उच्चत्तेणं, पंचगाउसताई उन्हेणं / सभी वक्षस्कार पर्वत सीता-सीतोदा महानदी तथा मन्दर पर्वत की दिशा में पांच सौ योजन ऊंचे और पाँच सौ कोश गहरी नींव वाले हैं। धातकोषंड-पुष्करवर-सूत्र १५७-~-धायइसंडे दीवे पुरस्थिमद्धणं मंदरस्स पन्बयस्स पुरथिमे णं सोयाए महाणदीए उत्तरे गं पंच वखारपच्चता पण्णत्ता, तं जहा-मालवंते, एवं जहा जंबुद्दीवे तहा जाव पुक्खरवरदीवड्ड पच्चत्थिमद्ध वक्खारपब्वया दहा य उच्चत्तं भाणियत्वं / धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में मन्दर पर्वत के पूर्व में, तथा सीता महानदी के उत्तर में पांच वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं जैसे 1. माल्यवान्, 2. चित्रकूट, 3. पक्ष्मकूट, 4. नलिन कूट, 5. एकशैल / _इसी प्रकार धातकीषण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध में, तथा अर्धपुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी जम्बूद्वीप के समान पांच-पांच वक्षस्कार पर्वत, महानदियों-सम्बन्धी द्रह और वक्षस्कार पर्वतों की ऊंचाई-गहराई कहना चाहिए (157) / समयक्षेत्र-सूत्र १५८-समयबखेते णं पंच भरहाई, पंच एरवताई, एवं जहा चउट्ठाणे बितीयउद्देसे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव पंच मंदरा पंच मंदरचूलियाो , णवरं-उसुयारा गस्थि / समयक्षेत्र (अढाई द्वीपों) में पांच भरत, पांच ऐरवत क्षेत्र हैं। इसी प्रकार जैसे चतु:स्थान के द्वितीय उद्देश में जिन-जिनका वर्णन किया गया है, वह यहां भी कहना चाहिए। यावत् पांच मन्दर, पाँच मंदर चूलिकाएं समयक्षेत्र में हैं। विशेष यह है कि वहां इषुकार पर्वत नहीं है। अवगाहन-सूत्र १५६-उसमे थे परहा कोसलिए पंच धणुसताई उड्डे उच्चत्तेणं होत्था। ___कौशलिक (कोशल देश में उत्पन्न हुए) अर्हन्त ऋषभदेव पांच सौ धनुष ऊंची अवगाहनावाले थे। १६०-भरहे गं राया चाउरंतचक्कवट्ठी पंच धणुसताई उड्ड उच्चत्तेणं होत्था। चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा पांच सौ धनुष ऊंची अवगाहना वाले थे (160) / १६१-बाहुबली णं अणगारे (पंच धणुसताई उड्डे उच्चत्तेणं होत्था)। अनगार बाहुबली' पांच सौ धनुष ऊंची अवगाहना वाले थे (161) / 1. दि. शास्त्रों में बाहबली की ऊंचाई 525 धनुष बताई गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org