________________ पंचम स्थान-द्वितीय उद्देश ] [466 वक्षस्कारपर्वत-सूत्र १५०-जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरस्थिमे णं सीयाए महाणदीए उत्तरे थे पंच वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-मालवंते चित्तकूडे, पम्हकूडे, पलिणकूडे, एगसेले। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व भाग में, सीता महानदी की उत्तर दिशा में पाँच वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं। जैसे 1. माल्यवान्, 2. चित्रकूट, 3. पक्ष्मकूट, 4. नलिनकूट, 5. एक शैल (150) / 151 -- जंबुद्दोवे दोवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं सोयाए महाणदोए दाहिणे णं पंच वक्खारपव्वता पण्णत्ता, तं जहा-तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे, सोमणसे। जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पूर्व भाग में सीता महानदी को दक्षिण दिशा में पांच वक्षस्कार-पर्वत कहे गये हैं। जैसे 1. त्रिकूट, 2. वैश्रमण कूट, 3. अंजन, 4. मातांजन, 5. सौमनस (151) / १५२–जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चस्थिमे णं सीसोयाए महाणदीए दाहिणे णं पंच बक्खारपन्चता पण्णत्ता, तं जहा-विज्जुप्पभे, अंकावती, पम्हावती, प्रासीविसे, सुहावहे / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पश्चिम भाग में सीतोदा महानदी की दक्षिण दिशा में पाँच वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं / जैसे---- 1. विद्य त्प्रभ, 2. अंकावती, 3. पक्ष्मावती, 4. प्राशीविष, 5. सुखावह (152) / १५३–जंबद्दोवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सोपोयाए महाणदीए उत्तरे णं पंच वक्खारपवता पण्णता, तं जहा-चंदपन्वते, सूरपवते, णागपवते, देवपव्वते, गंधमादणे / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के पश्चिम भाग में सीतोदा महानदी की उत्तर दिशा में पाँच वक्षस्कार पर्वत कहे गये हैं / जैसे 1. चन्द्रपर्वत, 2. सूर्यपर्वत, 3. नागपर्वत, 4. देवपर्वत, 5. गन्धमादन (153) / महादह-सूत्र १५४–जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे गं देवकुराए कुराए पंच महदहा पण्णता, तं जहा—णिसहदहे, देवकुरुदहे, सूरदहे, सुलसदहे, विज्जुष्पभदहे / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण भाग में देवकुरु नामक कुरुक्षेत्र में पांच महाद्रह कहे गये हैं / जैसे 1. निषधद्रह, 2. देवकुरुद्रह, 3. सूर्यद्रह, 4. सुलसद्रह, 5. विद्युत्प्रभद्रह (254) / १५५-जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पब्वयस्स उत्तरे णं उत्तरकुराए कुराए पंच महादहा पण्णता, तं जहा–णोलवंतदहे, उत्तरकुरुदहे. चंददहे, एरावणदहे, मालवंतदहे / जम्बूद्वीपनामक द्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर भाग में उत्तरकुरुनामक कुरुक्षेत्र में पांच महाद्रह कहे गये हैं। जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org