________________ पंचम स्थान-द्वितोय उद्देश ] [ 461 परिज्ञा-सूत्र १२३–पंचविहा परिणा पण्णता, तं जहा-उवहिपरिणा, उवस्मयपरिणा, कसाय. परिणा, जोगपरिणा, भत्तपाणपरिणा। परिज्ञा पांच प्रकार की कही गई है / जैसे१. उपधिपरिज्ञा, 2. उपाश्रयपरिज्ञा, 3. कषायपरिज्ञा, 4. योगपरिज्ञा, 5. भक्त-पान परिज्ञा। विवेचन-वस्तुस्वरूप के ज्ञानपूर्वक प्रत्याख्यान या परित्याग को परिज्ञा कहते हैं / व्यवहार-सूत्र १२४---पंचविहे क्वहारे पण्णत्ते, तं जहा-आगमे, सुते, प्राणा, धारणा, जोते / जहा से तत्थ प्रागमे सिया, प्रागमेणं ववहारं पवेज्जा। णो से तत्थ प्रागमे सिया जहा से तत्थ सुते सिया, सुतेणं ववहारं पट्टवेज्जा / णो से तत्थ सुते सिया (जहा से तत्थ प्राणा सिया, आणाए ववहारं पट्ठवेज्जा / णो से तत्थ प्राणा सिया जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं पट्ठवेज्जा। णो से तत्थ धारणा सिया) जहा से तत्थ जीते सिया, जीतेणं ववहारं पट्टवेज्जा / इच्चतेहि पंचहि ववहारं पट्टवेज्जा--प्रागमेणं (सुतेणं प्राणाए धारणाए) जोतेणं / जधा-जधा से तत्थ प्रागमे (सुते प्राणा धारणा) जोते तधा-तधा ववहारं पट्टवेज्जा। से किमाहु भंते ! आगमवलिया समणा णिग्गंथा ? इच्चेतं पंचविधं ववहारं जया-जया हि-जहि तया-तया तहि-तहिं अणिस्सितोवस्सितं सम्म वहरमाणे समणे णिग्गंथे प्राणाए प्राराधए भवति / व्यवहार पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे१. प्रागमव्यवहार, 2. श्रु तव्यवहार, 3. ग्राज्ञाव्यवहार, 4. धारणाव्यवहार, 5. जीतव्यवहार (124) / जहां आगम हो अर्थात् जहां प्रागम से विधि-निषेध का बोध होता हो वहां आगम से व्यवहार की प्रस्थापना करे। जहां आगम न हो, श्र त हो, वहां श्रुत से व्यवहार की प्रस्थापना करे। जहां श्रु त न हो, आज्ञा हो, वहां आज्ञा से व्यवहार की प्रस्थापना करे / जहां आज्ञा न हो, धारणा हो, वहां धारणा से व्यवहार की प्रस्थापना करे / जहां धारणा न हो, जीत हो, वहां जीत से व्यवहार की प्रस्थापना करे। इन पांचों से व्यवहार की प्रस्थापना करे-१. पागम से, 2. श्रुत से, 3. आज्ञा से, 4. धारणा से, 5. जीत से / जिस समय जहां आगम, श्रत, आज्ञा, धारणा और जीत में से जो प्रधान हो, वहां उसीसे व्यवहार की प्रस्थापना करे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org