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________________ पच म स्थान-द्वितीय उद्देश ] [486 दण्ड पांच प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. अर्थदण्ड–प्रयोजन-वश अपने या दूसरों के लिए जीव-घात करना। 2. अनर्थदण्ड -विना प्रयोजन जीव-घात करना। 3. हिंसादण्ड—'इसने मुझे मारा था, या मार रहा है, या मारेगा' इसलिए हिंसा करना / 4. अकस्माद् दण्ड-अकस्मात जीव-घात हो जाना। 5. दष्टिविपर्यास दण्ड-मित्र को शत्र समझकर दण्डित करना (111) / क्रिया-सूत्र ११२--पंच किरियानो पण्णत्तानो, तं जहा-प्रारंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया, मिच्छादसणवत्तिया / क्रियाएं पांच कही गई हैं। जैसे१. प्रारम्भिकी क्रिया, 2. पारिग्रहिकी क्रिया, 3. मायाप्रत्यया क्रिया, 4. अप्रत्याख्यान क्रिया, 5. मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया (112) / 113-- मिच्छादिटियाणं णेरइयाणं पंच किरियानो पण्णत्ताओ, तं जहा- (आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया), मिच्छादसणवत्तिया / मिथ्यादृष्टि नारकों के पांच क्रियाएं कही गई हैं / जैसे१. आरम्भिको क्रिया, 2. पारिग्रहिकी क्रिया, 3. मायाप्रत्यया क्रिया, 4. अप्रत्याख्यान किया, 5. मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया (113) / ११४-एवं-सवेसि णिरंतरं जाव मिच्छद्दिट्टियाणं वेमाणियाणं, णवरं-विलिदिया मिच्छद्दिट्ठी ण भण्णंति / सेसं तहेव / इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि वैमानिकों तक सभी दण्डकों में पांचों क्रियाएं होती हैं। केवल विकलेन्द्रियों के साथ मिथ्यादृष्टि पद नहीं कहना चाहिए, क्योंकि वे सभी मिथ्यादृष्टि ही होते हैं, अतः विशेषण लगाने की आवश्यकता ही नहीं है। शेष सर्व तथैव जानना चाहिए (114) / ११५--पंच किरियानो पण्णत्तानो, तं जहा–काइया, आहिगरणिया, पारोसिया, पारितावणिया, पाणातिवातकिरिया। पुनः पांच क्रियाएं कही गई हैं / जैसे१. कायिकी क्रिया, 2 प्राधिकरणिकी क्रिया, 3. प्रादोपिकी क्रिया, 4. पारितापनिकी क्रिया, 5. प्राणातिपातिको क्रिया (115) / ११६–णेरयाणं पंच एवं चेव / एवं-णिरंतरं जाव बेमाणियाणं / नारकी जीवों में ये ही पांच क्रियाएं होती हैं / इसी प्रकार वैमानिकों तक सभी दण्डकों में ये ही पांच क्रियाएं कही गई हैं (116) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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