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________________ 486] [ स्थानाङ्गसूत्र १०५-पंचहि ठाणेहि इत्थी पुरसेण सद्धि संवसमाणीवि णो गभं धरेज्जा, तं जहा-- 1. णिच्चोउया। 2. प्रणोउया। 3. वावण्णसोया। 4. वाविद्धसोया। 5. अणंगपडिसेवणी-- इच्चेतेहि (पंचहि ठाणेहि इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गभं) णो धरेज्जा। पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ संवास करती हुई भी गर्भ को धारण नहीं करती। जैसे१. नित्यतु का--सदा ऋतुमती (रजस्वला) रहने वाली स्त्री। 2. अन्तुका-कभी भी ऋतुमती न होने वाली स्त्री। 3. व्यापन्नश्रोता--नष्ट गर्भाशयवाली स्त्री। 4. व्याविद्धश्रोता-क्षीण शक्ति गर्भाशयवाली स्त्री। 5. अनंगप्रतिषेविणी-अनंग-क्रीडा करने वाली स्त्री। इन पांच कारणों से पुरुष के साथ संवास करती हुई भी स्त्री गर्भ को धारण नहीं करती है (105) / १०६-पंचहि ठाणेहि इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गम्भं णो धरेज्जा, त जहा-- 1. उमि णो जिगामपडिसेविणी यावि भवति / 2. समागता वा से सुक्कपोग्गला पडिविद्धंसति / 3. उदिण्णे वा से पित्तसोणिते / 4. पुरा वा देवकम्मणा। 5. पुत्तफले वा णो णिवि? भवति-- इच्चेतेहि (पंचहि ठाणेहिं इत्थी पुरिसेण सद्धि संवसमाणीवि गन्भं) णो धरेज्जा / पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ संवास करती हुई भी गर्भ को धारण नहीं करती / जैसे१. जो स्त्री ऋतकाल में वीर्यपात होने तक पुरुष का सेवन नहीं करती है। 2. जिसकी योनि में आये शक्र-पदगल विनष्ट हो जाते हैं। 3. जिसका पित्त-प्रधान शोणित (रक्त-रज) उदीर्ण हो गया है। 4. देव-कर्म से (देव के द्वारा शापादि देने से) जो गर्भधारण के योग्य नहीं रही है / 5. जिसने पुत्र-फल देने वाला कर्म उपाजित नहीं किया है। इन पाँच कारणों से पुरुष के साथ संवास करती हुई भी स्त्री गर्भ को धारण नहीं करती है। निग्रन्थ-निर्ग्रन्थी-एकत्र-वास-सूत्र १०७---पंचहि ठाणेहि णिग्गंथा णिग्गंथोश्रो य एगतओ ठाणं वा सेज्ज वा णिसीहियं वा चेतेमाणा णातिक्कमंति, तं जहा 1. अत्थेगइया णिग्गंथा य जिग्गयोयो य एग महं अगामियं छिष्णावायं दीहमद्धमडविमणु पविट्ठा, तत्थेगयतों ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेमाणा जातिक्कमति / 2. अत्थेगइया णिग्गंथा य णिग्गंथीयो य गामंसि वा नगरंसि वा (खेडंसि वा कन्वडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा प्रागरंसि वा णिगमंसि वा पासमंसि वा सण्णिवेसंसि वा) रायहाणिसि वा वासं उवागता, एगतिया जत्थ उवस्सयं लभंति, एगतिया णो लभंति, तत्थेगतो ठाणं वा (सेज्ज वा णिसीहियं वा चेतेमाणा) णातिक्कमंति / 3. प्रत्येगइया णिग्गंथा य णिग्गंथोप्रो य णागकुमारावासंसि वा सुवण्णकुमारावासंसि वा वासं उवागता, तत्थेगो (ठाणं वा सेज्जं वा णिसोहियं वा चेतेमाणा) णातिक्कमति / For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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