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________________ 484] [स्थानाङ्गसूत्र 1. सागारिक पिण्ड-गृहस्थ श्रावक को सागारिक कहते हैं। जो गृहस्थ साधु के ठहरने के लिए अपना मकान दे, उसे शय्यातर कहते हैं। शय्यातर के घर का भोजन, वस्त्र, पात्रादि लेना साधु के लिए निषिद्ध है, क्योंकि उसके ग्रहण करने पर तीर्थंकरों की आज्ञा का अतिक्रमण, परिचय के कारण अज्ञात-उंछका अभाव आदि अनेक दोष उत्पन्न होते हैं। 2 राजपिण्ड-जिसका विधिवत् राज्याभिषेक किया गया हो, जो सेनापति, मंत्री, पुरोहित, श्रेष्ठी और सार्थवाह इन पाँच पदाधिकारियों के साथ राज्य करता हो, उसे राजा कहते हैं, उसके घर का भोजन राज-पिण्ड कहलाता है। राज-पिण्ड के ग्रहण करने में अनेक दोष उत्पन्न होते हैं। जैसे-तीर्थंकरों की आज्ञा का अतिक्रमण, राज्याधिकारियों के आने-जाने के समय होने वाला व्याघात, चोर आदि की आशंका, आदि। इनके अतिरिक्त राजाओं का भोजन प्रायः राजस और तामस होता है, ऐसा भोजन करने पर साधुको दर्प, कामोद्रेक आदि भी हो सकता है। इन कारणों से राजपिण्ड के ग्रहण करने का साधु के लिए निषेध किया गया है। राजान्तःपुर-प्रवेश-सूत्र १०२–पंहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे रायतेउरमणुपविसमाणे णाइक्कमति, तं जहा१. णगरे सिया सव्वतो समंता गुत्ते गुत्तदुवारे, बहवे समणमाहणा णो संचाएंति भत्ताए वा __ पाणाए वा णिमित्तए वा पविसित्तए वा, तेसि विण्णवणट्ठयाए रायंतेउरमणुपविसेज्जा। 2. पाङिहारियं वा पीढ-फलग-सेज्जा-संथारगं पच्चप्पिणमाणे रायतेउरमणुपविसेज्जा। 3. हयस्स वा गयस्स वा दुट्ठस्स प्रागच्छमाणस्स भोते रायतेउरमणुपविसेज्जा। 4. परो व णं सहसा वा बलसा वा बाहाए गहाय रायतेउरमणुपवेसेज्जा। 5. बहिया व णं पारामगयं वा उज्जाणगथं वा रायंतेउरजणो सम्वतो समंता संपरिक्खिवित्ता णं सण्णिवेसिज्जा। इच्चेतेहिं पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे (रायतेउरमणुपक्सिमाणे) णातिक्कमइ / पांच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ राजा के अन्तःपुर (रणवास) में प्रवेश करता हुआ तीर्थंकरों की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है / जैसे 1. यदि नगर सर्व ओर से परकोटे से घिरा हो, उसके द्वार बन्द कर दिये गये हों, बहुत-से श्रमण-माहन भक्त-पान के लिए नगर से बाहर न निकल सकें, या प्रवेश न कर सकें, तब उनका प्रयोजन बतलाने के लिए राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। 2. प्रातिहारिक (वापिस करने को कहकर लाये गये) पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक को वापिस देने के लिए राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। 3. दुष्ट घोड़े या हाथी के सामने आने पर भयभीत साधु राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। ___4. कोई अन्य व्यक्ति सहसा बल-पूर्वक बाहु पकड़कर ले जाये, तो राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। 5. कोई साधु बाहर पुष्पोद्यान या वृक्षोद्यान में ठहरा हो और वहां (क्रीडा करने के लिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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