________________ पंचम स्थान -प्रथम उद्देश ] [467 परिचारणा (मैथुन या कुशील-सेवना) पांच प्रकार की कही गई है / जैसे१. काय-परिचारणा--मनुष्यों के समान मैथुन सेवन करना। 2. स्पर्श-परिचारणा-स्त्री-पुरुष का परस्पर शरीरालिंगन करना। 3. रूप-परिचारणा-स्त्री-पुरुष का काम-भाव से परस्पर रूप देखना / 4. शब्द-परिचारणा--स्त्री-पुरुष के काम-भाव से परस्पर गीतादि सुनना / 5. मनःपरिचारणा- स्त्री-पुरुष का काम-भाव से परस्पर चिन्तन करना (54) / अग्रमहिषी-सूत्र ५५-चमरस्स णं प्रसुरिदस्स असुरकुमाररण्णो पंच प्रग्गहिसीनो पण्णत्तानो, त जहाकालो, राती, रयणी, बिज्जू, मेहा।। असुरकुमारराज चमर असुरेन्द्र की पांच अग्रमहिषियां कही गई हैं / जैसे-- 1. काली, 2. रात्री, 3. रजनी, 4. विद्युत्, 5. मेघा (55) / ५६–बलिस्स णं वइरोणिदस्स वइरोयणरण्णो पंच प्रग्गम हिसीनो पण्णत्तानो, तं जहासुभा, णिसुभा, रंभा, णिरंभा, मदणा। वैरोचनराज बलि वैरोचनेन्द्र की पाँच अग्रमहिषियां कही गई हैं / जैसे 1. शुम्भा, 2. निशुम्भा, 3. रम्भा, 4. निरंभा, 5, मदना (56) / अनोक-अनोकाधिपति-सूत्र ५७-चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो पंच संगामिया अणिया, पंच संगामिया अणियाधिवती पण्णत्ता, तं जहा–पायत्ताहिए, पीढाणिए, कुजराणिए, महिसाहिए, रहाणिए / दुमे पायत्ताणियाधिवती, सोदामे पासराया पीढाणियाधिवती, कुथ हस्थिराया कुजराणियाधिवती, लोहितक्खे महिसाणियाधिवती, किण्णरे रधाणियाधिवती। असुरकुमारराज चमर असुरेन्द्र के संग्राम (युद्ध) करने वाले पांच अनीक (सेनाएं) और पांच अनीकाधिपति (सेनापति) कहे गये हैं। जैसे-- 1. पादातानीक-पैदल चलने वाली सेना / 2. पीठानीक---अश्वारोही सेना / 3. कुजरानीक—गजारोही सेना / 4. महिषानीक—महिषारोही (भैसा-पाड़ा पर बैठने वाली) सेना। 5. रथानोक-रथारोही सेना (57) / इनके सेनापति इस प्रकार हैं१. द्रुम-पादातानीक का अधिपति / 2. अश्वराज सुदामा-पीठानीक का अधिपति / 3. हस्तिराज कुन्थु-कुजरानीक का अधिपति / 4. लोहिताक्ष-महिषानीक का अधिपति / 5. किन्नर-रथानीक का अधिपति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org