________________ पंचम स्थान-प्रथम उद्देश . [ 455 नारकी जीवों के शरीर पांच वर्ण और पांच रस वाले कहे गये हैं / जैसे१. कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र और श्वेत वर्ण वाले / 2. तथा तिक्त, कटुक, कषाय, अम्ल और मधुर रस वाले (23) / २४-एवं-णिरंतरं जाव वेमाणियाणं / इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डकों वाले जीवों के शरीर पांचों वर्ण और पांचों रस वाले जानना चाहिए (24) / विवेचन--व्यवहार से शरीरों के बाहिरी वर्ण नारकी और देवादिकों से कृष्ण या नीलादि एक ही वर्ण वाले होते हैं। किन्तु निश्चय से शरीर के विभिन्न अवयव पांचों वर्ण वाले होते हैं। इसी प्रकार रसों के विषय में भी जानना चाहिए / यो पागम में नारकी जीवों के शरीर अशुभ वर्ण और अशुभ रस वाले तथा देवों के शरीर शुभ वर्ण और शुभ रस वाले कहे गये हैं, यह व्यवहारनय का कथन है। २५-पंच सरीरगा पण्णता, त जह। पोरालिए, बेउम्बिए, प्राहारए, लेयए, कम्मए / शरीर पांच प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. औदारिकशरीर, 2. वैक्रियशरीर, 3. आहारकशरीर, 4. तैजसशरीर, 5. कार्मणशरीर (25) / २६-पोरालियसरीरे पंचवणे पंचरसे पण्णत्ते, त जहा-किण्हे, जाव (णीले, लोहिते, हालिद्दे), सुक्किल्ले / तित्ते, जाव (कडए, कसाए, अंबिले), महुरे। २७--एवं जाव कम्मगसरीरे / [वेउब्वियसरीरे पंचवणे पंचरसे पण्णत्ते, तं जहा--किण्हे, पीले, लोहिते, हालिद्दे, सुकिल्ले / तित्ते, कडुए कसाए, अंबिले, महुरे। २८-पाहारयसरीरे पंचवणे पंचरसे पण्णत्ते, तजहा-किण्हे, णोले, लोहिते, हालिद्दे, सुपिकल्ले / तिते, कडुए, कसाए, अंबिले, महरे / २६-तेययसरीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत्त, त जहा-किण्हे, णोले, लोहिते, हालिद्दे, सुक्किल्ले / तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे / ३०-कम्मगसरीरे पंचवण्णे पंचरसे पण्णत , त जहा-किण्हे, णीले, लोहिते, हालिद्दे, सुक्किल्ले / तित्त, कडुए, कसाए, अंबिले, महुरे / ] औदारिक शरीर पांच वर्ण और पांच रस वाला कहा गया है / जैसे१. कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र और श्वेत वर्ण वाला / 2. तिक्त, कटुक, कषाय, अम्ल और मधुर रस वाला (26) / वैक्रियशरीर पांच वर्ण और पांच रस वाला कहा गया है / जैसे१. कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र और श्वेतवर्ण वाला। 2. तिक्त, कटुक, कषाय, अम्ल और मधुर रस वाला (27) / पाहारक शरीर पांच वर्ण, पांच रस वाला कहा गया है / जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org